SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साध्वाचार के सूत्र कहा-साधु काने को काना, नपुंसक को नपुंसक, रोगी को रोगी एवं चोर को चोर न कहे क्योंकि इससे श्रोता को दुःख होता है।' प्रश्न १६. एषणा समिति का क्या तात्पर्य है ? उत्तर-आहार, उपधि (वस्त्र-पात्र आदि) एवं शय्या (स्थान-पाट-बाजोट आदि) इन तीनों प्रकार की वस्तुओं का अन्वेषण, ग्रहण तथा उपभोग में संयमपूर्वक प्रवृत्त होना एषणासमिति है। प्रश्न १७. एषणा समिति के कितने प्रकार है ? उत्तर-तीन प्रकार हैं १. गवेषणा-सोलह उद्गम और सोलह उत्पादन–इन बत्तीस दोषों को टालकर शुद्ध आहार आदि की खोज करना। २. ग्रहणैषणा-शंकित आदि एषणा के दस दोषों को टालकर शुद्ध आहार आदि लेना। ३. परिभोगैषणा–गृहीत भिक्षा का निर्दोष रूप से अर्थात् पांच मांडलिक दोषों को टालते हुए उपभोग करना। प्रश्न-१८. आहार-पानी ग्रहण प्रक्रिया में कितने प्रकार के दोष शास्त्रों में बतलाए गये हैं ? उनके कितने विभाग हैं? उत्तर-आहार-पानी आदि की ग्रहण प्रक्रिया में बयांलीस प्रकार के संभावित दोष निर्दिष्ट हैं। उनके तीन मुख्य विभाग हैं-१. उद्गम के दोष २. उत्पादन के दोष ३. एषणा के दोष। प्रश्न १६. उद्गम क्या है ? उनके कितने दोष हैं ? उत्तर-उद्गम दोष का अर्थ होता है उत्पादन-काल में लगने वाले दोष। गृहस्थ खाने-पीने की वस्तुएं बनाते समय सोलह प्रकार से दोष लगा सकता है। वे दोष इस प्रकार है १. आधाकर्म-साधु के निमित्त सचित्त-वस्तु को अचित्त करना एवं अचित्त - को पकाना आधाकर्मदोष है। यह साधु के लिए कल्पनीय नहीं है। २. औद्देशिक-सामान्यरूप से भिक्षुओं के लिए बनाया हुआ आहारादि लेना। ३. पूर्तिकर्म-आधाकर्म आहारादि का अंश मिला हुआ द्रव्य लेना। १. दसवे. ७/१२ ४. उत्तरा. २४/१२ २. उत्तरा. २४/११ ५. प्रवचनसारोद्धार ६७ गाथा ५६४-५६५, ३. उत्तरा. २४/११-१२ निशीथ १३/६१ से ७५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003051
Book TitleSadhwachar ke Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajnishkumarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy