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प्रवचन-माता प्रकरण
३. याचनी-याचना करना, जैसे-अमुक चीज चाहिए। ४. प्रच्छनी-पूछना, जैसे यह मार्ग कहां जाता है? ५. प्रज्ञापनी-प्ररूपणा करना, जैसे-जीव है, अजीव है इत्यादि। ६. प्रत्याख्यानी-पच्चक्खाण करना, जैसे-अमुक कार्य करने का
प्रत्याख्यान करूंगा। ७. इच्छानुलोमा-पूछने वाले की इच्छा का अनुमोदन करना, जैसे-किसी ने पूछा–मैं अमुक कार्य करूं या नहीं। उसे उत्तर में हां कर या नहीं
कर-इस प्रकार कहना। ८. अनभिगृहीता-उस शब्द का प्रयोग, जिसका कोई अर्थ न निकले। ९. अभिगृहीता–अर्थ का अभिग्रहण कर घट-पट आदि शब्दों का
उच्चारण करना। १०. संशयकारिणी-जिसके अनेक अर्थ हों, ऐसे शब्दों का प्रयोग करना।
जैसे कहना कि सैन्धव लाओ। सैन्धव शब्द से दो अर्थ निकलते हैं घोड़ा तथा नमक । अतः सुनने वाला सन्देह में पड़ सकता है। ११. व्याकृत-विस्तार सहित बोलना, जिससे साफ-साफ समझ में आ
जाए। १२. अव्याकृत–अतिगम्भीरतायुक्त कथन, जो समझ में कठिनता से
आए। प्रश्न १३. भाषासमिति की आराधना करने वाले साधु को किस भाषा का
प्रयोग करना चाहिए? उत्तर-असत्य एवं मिश्रभाषा का प्रयोग साधु के लिए पूर्णतः निषिद्ध है।' सत्य
एवं व्यवहार ये दो भाषाएं निरवद्य- पापरहित हों तो बोल सकता है। प्रश्न १४. क्या साधु निश्चयकारी भाषा बोल सकता है? उत्तर-नहीं, साधु निश्चयकारी भाषा नहीं बोल सकता। संभावनात्मक भाषा
का प्रयोग कर सकता है। प्रश्न १५. क्या सत्यभाषा भी सावध-पापसहित होती है? उत्तर-हां, यदि सत्य भाषा भी कर्कश, निष्ठुर, रूखी, आस्रव-उत्पादक,
छेदकारिणी, भेदकारिणी, परितापकारिणी, उपद्रवकारिणी एवं जीवों का उपघात करने वाली हो तो वह सावध होती है। इसीलिए भगवान् ने
३. आचारचूला अ. ४/२/२१
१. दसवे. ७/१ २. दसवे. ७/६ से १० तक
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