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साध्वाचार के सूत्र प्रशन ७. भाषा समिति का क्या अर्थ है? उत्तर-यतनापूर्वक निरवद्य भाषा बोलना अर्थात् आवश्यकता होने पर भाषा
समिति के दोषों का वर्जन करते हुए सत्य, हित, मित एवं स्पष्ट (असंदिग्ध) भाषा बोलना भाषा समिति है। इसका पालन चार प्रकार से किया जाता है।
द्रव्य से-क्रोध-मान-माया-लोभ-हास्य-भय-वाचालता एवं निन्दाविकथा-रहित भाषा बोलना।'
क्षेत्र से-चलते समय न बोलना। काल से-प्रहर रात्रि के बाद धीमे स्वर से बोलना, ऊंचे स्वर से व्याख्यान आदि न करना।
भाव से विवेक पूर्वक निरवद्य वचन बोलना। प्रश्न ८. भाषा के कितने प्रकार है ? उत्तर-जो भाष्यमाण है, कही जा रही है, वह भाषा है। उसके चार प्रकार हैं
१. सत्य-भाषा-जीवादि नव पदार्थों का यथार्थ स्वरूप कहना अथवा
तत्त्व आदि का यथार्थ निरूपण करना। २. असत्य-भाषा-जो पदार्थ जिस रूप में नहीं हैं उन्हें उस रूप में कहना। ३. सत्यामृषा-भाषा-जो भाषा कुछ सत्य है एवं कुछ असत्य है वह
सत्यामृषा (मिश्र) भाषा कहलाती है। ४. असत्यामृषा-भाषा (आदेश-उपदेशात्मक भाषा)-जो भाषा न सत्य है
एवं न असत्य, केवल आदेश या उपदेशात्मक है, वह असत्यामृषा
(व्यवहार) भाषा कहलाती है। प्रश्न 8. सत्यभाषा के दस भेद कौन-कौन से हैं? उत्तर- १. जनपद-सत्य–देश विशेष की अपेक्षा शब्दों का व्यवहार करना।
२. सम्मत-सत्य-प्राचीन विद्वानों द्वारा मान्य अर्थ में शब्दों का प्रयोग
करना। ३. स्थापना-सत्य-सदृश या विसदृश आकार वाली वस्तु में किसी __व्यक्ति विशेष की स्थापना करके उसे उस नाम से पुकारना। ४. नामसत्य-गुण न होने पर भी व्यक्ति-विशेष या वस्तु-विशेष का वैसा
नाम रखकर उसे उस नाम से उच्चारित करना।
१. उत्तरा. २४/६-१०
२. प्रज्ञापना पद ११/८३१
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