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२. प्रवचन-माता प्रकरण
प्रश्न १. प्रवचन माता से क्या तात्पर्य है? उत्तर-जो पांच महाव्रतों के पालन में मां की तरह सहयोग करती है, माता के
समान साधक की रक्षा करती है, उसे प्रवचन-माता कहा जाता है? प्रश्न २. प्रवचन माता कितनी है ? उत्तर-प्रवचन माता आठ हैं-पांच समिति और तीन गुप्ति ।' प्रश्न ३. समिति किसे कहते हैं ? उत्तर-प्रशस्त-एकाग्रपरिणामपूर्वक की जाने वाली सम्यक्-आगमोक्त प्रवृत्ति का
नाम समिति है। संयमी की सम्यक प्रवृत्ति को भी समिति कहते है। प्रश्न ४. समिति के कितने प्रकार हैं ? उत्तर-समिति के पांच प्रकार हैं:-१. ईर्या-समिति, २. भाषा-समिति,
३. एषणा-समिति, ४. आदान-निक्षेप-समिति, ५. उच्चार-प्रस्रवण-खेल
सिंघाण-जल्ल-परिष्ठापन-समिति (उत्सर्ग समिति)। प्रश्न ५. ईर्या समिति से आप क्या समझते हैं? उत्तर-ज्ञान-दर्शन-चारित्र के निमित्त युगपरिमाण अर्थात् चार हाथ प्रमाण (९६
अंगुल) अथवा शरीर प्रमाण आगे की भूमि को एकाग्रचित्त से देखते हुए
राजमार्गादिक में यतनापूर्वक गमन करना 'ईर्यासमिति' है।' प्रश्न ६. ईर्या-समिति के चार कारण कौन-कौन है? उत्तर-१. आलंबन-ज्ञान-दर्शन-चारित्र का आलम्बन लेकर गमन करना।
२. काल-दिन में देखकर चलना। ३. मार्ग-राजमार्ग आदि से गमन करना। ४. यतना-सावधानीपूर्वक दिन में शरीर प्रमाणभूमी को देखकर चलना।
१. उत्तरा. ४/२७, आवश्यक ४/७
पडिक्कमणं सुतं २. समवाओ ५/७, स्था. ५/३/२०३
३. उत्तरा. २४/७ ४. उत्तरा. २४/४ से ८
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