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महाव्रत प्रकरण
२७. गात्र - उद्वर्तन - शरीर पर पीठी (उबटन) आदि मलना ।
२८. गृहिवैयावृत्त्य – गृहस्थों की वैयावृत्त्य -- सेवा करना ।
२९. आजीववृत्तिता - अपने जाति-कुल आदि का परिचय देकर आजीविका चलाना ( भिक्षा प्राप्त करना) ।
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३०. तप्तानिवृत्तभोजित्व - गर्म होने पर भी जो पूरा अचित्त न हुआ हो, ऐसा मिश्र आहार- पानी लेना ।
३१. आतुरस्मरण - क्षुधा आदि से पीड़ित होकर पूर्व भुक्त वस्तुओं को याद करना अथवा रोग उत्पन्न होने पर माता-पिता आदि स्वजनों की एवं चिकित्सालय की शरण लेना ।
३२. अनिर्वृत्तमूलक—– सचित्त मूला लेना एवं भोगना । ३३. अनिर्वृत्तशृंगबेर - सचित्त अदरख लेना- भोगना । ३४. सचित्त इक्षुखण्ड लेना- भोगना ।
३५. सचित्त कन्द (शकरकन्द ) आदि लेना- भोगना ।
३६. सचित्तमूल (वृक्ष की जड़) लेना- भोगना ।
३७. सचित्त फल (दाड़िम आदि) लेना- भोगना ।
३८. सचित्त बीज (गेहूं-तिल आदि या ककड़ी आदि के बीज) लेनाभोगना ।
३९. सचित्त सौवर्चल - संचल (उत्तरापथ के एक पर्वत की खान का (अथवा कृत्रिम) लवण लेना- भोगना ।
४०. सचित्त सैन्धव (सिन्धप्रदेश की खान का) लवण लेना- भोगना । ४१. सचित्त रोमा (सामान्य खान का) लवण लेना- भोगना ।
४२. सचित्त सामुद्रिक (समुद्र जल से बनाया हुआ) लवण लेनाभोगना । (सांभर का नमक भी इसी के अंतर्गत है) ।
४३. पांशुक्षार - खारी मिट्टी से निकाला हुआ लवण लेना- भोगना ।
४४. सचित्त काला लवण लेना- भोगना ।
४५. सिर - रोग से बचने के लिए धूम्रपान करना या धूम्रपान की नलिका रखना । अथवा शरीर या वस्त्र को धूप खेना ।
४६. बिना कारण वमन करना ।
४७. बिना कारण वस्तिकर्म (अपान मार्ग से नली के द्वारा स्नेह आदि)
पदार्थ चढ़ाना ।
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