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साध्वाचार के सूत्र ५. रात्रिभक्त-रात को आहार लेना एवं खाना। ६. स्नान-देश स्नान या सर्व स्नान करना। ७. गंध-सुगंधित इत्र आदि का विलेपन करना। ८. माल्य–फूलों की माला धारण करना। ९. बीजन-पंखे आदि से हवा लेना। १०. सन्निधि-खाने-पीने की चीजों का संग्रह करना अर्थात् रातवासी
रखना।
११. गृहि-अमत्र-गृहस्थ के पात्र (थाली आदि) में भोजन करना। १२. राजपिण्ड-मूर्धाभिषिक्त राजा का (राज्याभिषेक के समय)आहारादि .. लेना। १३. किमिच्छक कौन क्या चाहता है? ऐसे पूछ कर दिया जाने वाला
(दानशाला का) आहारादि लेना। १५. संबाधन-विशेष कारण के बिना तेलादि का मर्दन करना। १६. संप्रच्छन-गृहस्थ को कुशल (साता) पूछना। १७. देहप्रलोकन-तेल, पानी या दर्पण में शरीर देखना। १८. अष्टापद-शतरंज खेलना। १९. नालिका–जूआ खेलना। २०. छत्र-वर्षा एवं आतप से बचने के लिए छत्र धारण करना। (स्थविर
साधु को विशेष आज्ञा है।) २१. चैकित्स्य-अपनी सावद्य-चिकित्सा करना एवं किसी दूसरे से . करवाना अनाचार है। (जिनकल्पिक साधु चिकित्सा मात्र नहीं कर
सकते)। २२. उपानत्-जूता पहनना। स्थविर या रोगी साधु पादरक्षा के लिए
चर्मखण्ड आदि रख सकते हैं। २३. ज्योतिःसमारम्भ-किसी भी प्रकार का अग्नि का आरम्भ करना। २४. शय्यातरपिण्ड-शय्यातर का आहारादि लेना। २५. आसन्दी-पल्यंक-आसन्दी (बेंत आदि के आसन), पलंग-खाट
आदि पर (जिनकी पडिलेहणा अच्छी तरह न हो सके) बैठना-सोना। २६. गृहान्तरनिषद्या-भिक्षा करते समय गृहस्थ के अंतर घर (रसोई ____ आदि) में बैठना। (रोगी, वृद्ध एवं तपस्वी साधु बैठ सकते हैं)।
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