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महाव्रत प्रकरण
५. अपरिग्रह महाव्रत की पांच भावनाएं१. श्रोत्रेन्द्रिय के राग से उपरत होना। २. चक्षुःइन्द्रिय के राग से उपरत होना। ३. घ्राणेन्द्रिय के राग से उपरत होना। ४. रसनेन्द्रिय के राग से उपरत होना।
५. स्पर्शन्द्रिय के राग से उपरत होना।' प्रश्न २२. मूलगुण-उत्तरगुण का अर्थ क्या है ? उत्तर-चारित्ररूपवृक्ष के जो मूल (जड़) के समान हों, वे मूलगुण कहलाते हैं।
साधुओं के लिए पांच महाव्रत एवं श्रावकों के लिए पांच अणुव्रत मूल गुण हैं। चारित्ररूप वृक्ष की शाखा-प्रशाखावत् जो गुण हैं, वे उत्तर गुण कहलाते हैं। मूल गुण की सुरक्षा के लिए उत्तर गुण की आराधना की जाती है। साधुओं के लिए पिण्डविशुद्धि, समिति, भावना, तप, प्रतिमा, अभिग्रह आदि और श्रावकों के लिए दिशावत आदि उत्तर गुण हैं। महाव्रत-अणुव्रत को मूलगुण-प्रत्याख्यान एवं दशपच्चक्खाण, दिशाव्रत
आदि को उत्तर गुण-प्रत्याख्यान कहा है। प्रश्न २३. अतिक्रम-व्यतिक्रम आदि से क्या तात्पर्य है? उत्तर-स्वीकृत महाव्रतों एवं व्रतों को दूषित करने के चार हेतु हैं-१. अतिक्रम
व्रतों को भंग करने का संकल्प या व्रतभंग करने वाले कार्य का अनुमोदन । २. व्यतिक्रम-व्रतभंग करने के लिए उद्यत होना। ३. अतिचार-व्रतभंग
करने के लिए सामग्री जुटाना ४. अनाचार-व्रत का सर्वथा भंग कर देना। प्रश्न २४. अनाचार कितने हैं? उत्तर-अनाचार बावन हैं। प्रश्न २५. बावन अनाचार कौन-कौन-से हैं ? उत्तर- १. औद्देशिक साधु के उद्देश्य से बनाया हुआ आहारादि लेना।
२. क्रीतकृत–साधु के लिए खरीद कर तैयार की हुई वस्तु लेना। ३. नित्याग्र–आदरपूर्वक निमंत्रित कर प्रतिदिन दिया जाने वाला आहारादि
लेना।
४. अभ्याहृत-सामने लाया हुआ (तीन घर उपरान्त) आहारादि लेना। १. समवाओ २५/१
३. आवश्यक ४/११ सज्झायादि अइयार२. भगवती ७/२
पडिक्कमण सुत्तं ४. दसवे. ३/२ से १ तक
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