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साध्वाचार के सूत्र रखे जायें तो वे सरलतावश गलती कर लें, ऐसा संभव है। चौबीसवें तीर्थंकर के साधु वक्रजड़-वक्रतायुक्त जड़ता करने वाले-जान-बूझकर कुतर्क करने वाले होते हैं। उनके यदि चार महाव्रत हों तो संभव है-वे कुतर्क निकालकर स्खलना करने लगें। बाईस तीर्थंकरों एवं महाविदेहक्षेत्र के साधु ऋजु-प्राज्ञ अर्थात् सरलतायुक्त विचक्षण होते हैं अतः वे प्रायः स्खलना नहीं करते। इन सभी तत्त्वों को सोचकर पांच एवं चार
महाव्रत रखे गये हैं। प्रश्न ६. क्या तीन महाव्रत का भी विधान है ? उत्तर-हां! आगम में भगवान महावीर ने तीन ‘याम' कहे हैं अहिंसा, सत्य
और अपरिग्रह। तीसरे-चौथे का पांचवें में समावेश किया गया है। याम शब्द का भावार्थ व्रत है। योगदर्शन में अहिंसा आदि को यम कहा है एवं ये ही जाति, देश, काल समय के अपवाद से रहित हों (इनमें किसी भी
परिस्थितिवश छूट न ली जाए) तो ये ही पांचों महाव्रत हैं, ऐसा माना है।' प्रश्न ७. मुनि महाव्रतों को कितने करण और योग से स्वीकार करते हैं? उत्तर-तीन करण और तीन योग से। प्रश्न ८. अहिंसा महाव्रत किसे कहते हैं? उत्तर-सर्वथा प्राणातिपातविरमण (जीवहिंसा-निवृत्ति) महाव्रत में साधु प्रमादवश
सूक्ष्म-बादर एवं त्रस-स्थावर सभी प्रकार के जीवों की हिंसा का
प्रत्याख्यान करते है। प्रश्न ६. सत्य महाव्रत क्या है? उत्तर-क्रोध-लोभ-भय-हास्य आदि किसी भी कारणवश मृषावाद (असत्य) का __यावज्जीवन के लिए तीनकरण-तीनयोग से त्याग करना सत्य महाव्रत है। प्रश्न १०. अचौर्य महाव्रत से क्या तात्पर्य है ? उत्तर-सर्वथा-अदत्तादानविरमण महाव्रत में साधु गांव-नगर जंगल में कहीं भी
कोई वस्तु (चाहे वह अल्पमूल्य हो, बहुमूल्य हो, छोटी हो, बड़ी हो तथा सचित्त हो या अचित्त हो) स्वामी की आज्ञा के बिना लेने का जीवन भर के लिए तीन करण-तीन योग से त्याग करते हैं। और तो क्या? दांत साफ करने के लिए तिनका भी बिना आज्ञा के नहीं ले सकते। बिना आज्ञा
तिनका लेने से अचौर्य महाव्रत की विराधना होती है। १. उत्तरा. २३/३६
३. पातंजलयोगदर्शन २/३०-३१ २. आचारांग ८/१
४. दसवे. ६/१३-१४
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