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१. महाव्रत प्रकरण
प्रश्न १. चारित्रधर्म के कितने प्रकार है ? उत्तर-दो प्रकार हैं। अगारचारित्रधर्म और अनगारचारित्रधर्म । प्रश्न २. अगार चारित्र धर्म और अनगार चारित्र धर्म से क्या तात्पर्य है ? उत्तर–अगारचारित्रधर्म गृहस्थ के लिए होता है। इसमें गृहस्थ बारहव्रत (पांच
अणुव्रत, तीन गुणव्रत एवं चार शिक्षाव्रत) धारण करते हुए यथाशक्ति सावद्य-योग का त्याग करता है। अनगारचारित्रधर्म महाव्रतधारी साधुओं के होता है। तीन करण-तीन योग से सर्वसावधयोग का त्याग
करना-अनगार चारित्र धर्म है। प्रश्न ३. महाव्रत का स्वरूप क्या है? उत्तर-अणुव्रत की अपेक्षा ये व्रत महान् (बड़े) हैं अतः इनको महाव्रत कहते हैं।
महाव्रत पांच हैं–१. सर्वथा प्राणाति-पातविरमण, २. सर्वथा मृषावादविरमण, ३. सर्वथा अदत्ता-दानविरमण, ४. सर्वथा अब्रह्मचर्यविरमण,
५. सर्वथा परिग्रहविरमण। प्रश्न ४. साधु के महाव्रत कितने होते हैं ? उत्तर-भरत, ऐरावत क्षेत्र में प्रथम और अन्तिम तीर्थंकर के समय महाव्रत पांच
होते हैं। महाविदेह-क्षेत्र में तथा शेष बाईस तीर्थंकरों के समय महाव्रत चार ही होते हैं। यथा-१. सर्व प्राणातिपात विरमण, २. सर्व मृषावाद विरमण, ३. सर्व अदत्तादान विरमण, ४. सर्व परिग्रह विरमण। जहां चार महाव्रत का विधान है वहां चौथे ब्रह्मचर्य महाव्रत का अपरिग्रह महाव्रत में
समावेश होता है। प्रश्न ५. महाव्रतों में चार एवं पांच का फर्क क्यों रखा गया? उत्तर-प्रथम तीर्थंकर के साधु ऋजु-जड़ अर्थात् सरल होते हैं। यदि चार महाव्रत १. स्थानांग २/१०६
३. स्थानांग ४/१३६-१३७ २. वही, ५/१
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