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महाव्रत प्रकरण
प्रश्न ११. अदत्त कितने प्रकार का होता है ? उत्तर-अदत्त चार प्रकार का माना जाता है
१. स्वामि-अदत्त स्वामी की आज्ञा के बिना वस्तु ग्रहण करना। २. जीव-अदत्त-स्वामी के देने पर भी वस्तु के अधिष्ठाता की अनुमति
के बिना ग्रहण करना। ३. तीर्थंकर-अदत्त-तीर्थंकर द्वारा निषिद्ध प्रवृत्ति करना। ४. गुरु-अदत्त-निर्दोषविधि से प्राप्त आहार आदि में भी (आज्ञा लिए
__ बिना भोगना) गुरु द्वारा निषिद्ध प्रवृत्ति करना। प्रश्न १२. साधु जंगलादि में से तृण-धूल आदि किसकी आज्ञा से लेते हैं ? उत्तर-देवेन्द्र की आज्ञा से लेते हैं। शास्त्र में पांच प्रकार के अवग्रह कहे हैं -
१. देवेन्द्रावग्रह, २. राजावग्रह, ३. गृहपति अवग्रह, ४. गृहस्थ सागारी
अवग्रह ५. साधर्मिकावग्रह। (अवग्रह का अर्थ आज्ञा है)। प्रश्न १३. क्या सभी साधुओं के लिए यही विधान है? उत्तर-हां सभी के लिए यही विधान है-भरत क्षेत्र में साधु को वहां जंगलादि
स्थानों में कोई व्यक्ति आज्ञा देने वाला न हो, बैठते समय, परिष्ठापन करते समय एवं तृण-धूलादि वस्तु लेते समय 'अणुजाणह! जस्स उग्गहं ।' (जिसका अवग्रह है, वह मुझे आज्ञा दे) यह पाठ बोलकर शक्रेन्द्र की
आज्ञा ली जाती है। प्रश्न १४. ब्रह्मचर्य महाव्रत क्या है ? उत्तर-देव-मनुष्य एवं तिर्यंच-संबंधी अब्रह्मचर्य का यावज्जीवन तीनकरण
तीनयोग से त्याग करना ब्रह्मचर्य महाव्रत हैं। प्रश्न १५. ब्रह्मचर्यव्रत की रक्षा के लिए साधु को और क्या करना चाहिए? उत्तर-निम्नोक्त दस नियमों का सजगतापूर्वक पालन करना चाहिए
१. शुद्धस्थान-सेवन-स्त्री-पशु-नपुंसकों से रहित स्थान में रहना। २. स्त्रीकथा-वर्जन-कामरस को पैदा करने वाली स्त्रियों की कथा न
करना। ३. एकासन-त्याग-जहां स्त्री बैठी हो वहां अंतर्मुहर्त तक न बैठना।
(बैठना पड़े तो पूंजकर बैठने की विधि है)
१. भगवती १६/२/३४
२. उत्तराध्ययन १६/२-१२
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