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प्रश्न १. कल्प का क्या अर्थ है ?
उत्तर - शास्त्रों में निर्दिष्ट साधु के आचार एवं अनुष्ठान विशेष को कल्प कहते हैं। कल्प मुख्यतया दो माने गये हैं-स्थित कल्प एवं अस्थित कल्प।' प्रश्न २. स्थितकल्प का क्या अर्थ है ?
१४. कल्प प्रकरण
उत्तर - अचेलक आदि दसों कल्पों का नियमित रूप से पालना स्थितकल्प है एवं पालने वाले साधु स्थितकल्पिक कहलाते हैं । ये प्रथम- अंतिम तीर्थंकरों के समय होते हैं ।
प्रश्न ३. दस कल्प कौन-कौन से हैं?
उत्तर- (१) अचेलक (२) औद्देशिक (३) शय्यातरपिंड (४) राजपिंड ( ५ ) कृतिकर्म ( ६ ) व्रत कल्प (७) ज्येष्ठ कल्प (८) प्रतिक्रमण कल्प (९) मास कल्प (१०) पर्युषण कल्प ।
प्रश्न ४. अचेल आदि १० कल्प से आप क्या समझते है ?
उत्तर - १. अचेलकत्व - चेल का अर्थ वस्त्र है । वस्त्र न रखना या अल्प-मूल्य, श्वेत एवं प्रमाणोपेत रखना अचेलकल्प है । २. औदेशिककल्प - साधुओं के उद्देश्य से बनाया गया आहार आदि औद्देशिक होता है एवं तद्विषयक आचार का नाम औद्देशिककल्प है । ३. शय्यातरपिण्डकल्प - शय्यातर के (जिसके मकान में साधु निवास करें उसके ) घर से आहारादि लेने के विषय में बताये गये आचार को शय्यातरपिण्डकल्प कहते हैं । ४. राजपिण्डकल्प - इस कल्प में राजाओं के यहां से (उत्सवादि के अवसर पर) आहार आदि लेने का निषेध है । यह कल्प मध्यम-तीर्थंकरों के साधुओं के लिए आवश्यक है । ५. कृतिकर्मकल्प - आगमविधि के अनुसार साधु-साध्वियों को अपने रत्नाधिक साधु-साध्वियों का
१. भ. २५ / ६ / २६६ २. स्थानां. टि. ३६ / सू. १०३
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३. (क) बृहत्कल्प ७/२०/६३६४ (ख) स्थानां. सू. १०३ / टि. ३६
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