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साध्वाचार के सूत्र
२. नगरस्थविर-नगर के माननीय एवं प्रतिष्ठित व्यक्ति। ३. राष्ट्रस्थविर राष्ट्र के माननीय मुख्य नेता। ४. प्रशास्तृस्थविर–धर्मोपदेश देने वालों में प्रमुख व्यक्ति । ५. कुलस्थविर-लौकिक एवं लोकोत्तर (धार्मिक) कुलों की व्यवस्था करने वाले एवं व्यवस्था तोड़ने वालों को दंडित करने वाले व्यक्ति । ६. गणस्थविर-गण की व्यवस्था करने वाले व्यक्ति। ७. संघस्थविर-संघ की व्यवस्था करने वाले व्यक्ति। धर्मपक्ष में एक आचार्य की संतति को या चान्द्र आदि साधु समुदाय को कुल कहते हैं। कुल के समुदाय को अथवा सापेक्ष तीन कुल के समूह को गण कहते हैं तथा गणों के समुदाय को संघ कहते हैं। ८. जातिस्थविर साठ वर्ष की आयु वाले वृद्ध व्यक्ति। ९. श्रुतस्थविर स्थानांग-समवायांग शास्त्र के ज्ञाता मुनिराज।
१०. पर्यायस्थविर-बीस वर्ष की दीक्षा पर्याय वाले साधु । प्रश्न ४४. गणी किसे कहते हैं ? । उत्तर-साधु-समुदाय का नाम गण है और जिसके अधिकार में गण हो। वह गणी
या गणाचार्य कहलाता है। गणी सूत्र के अर्थ का निर्णय करने वाले, प्रियधर्मी, दृढ़धर्मी, शास्त्रानुकूल प्रवृत्ति में कुशल, जातिसम्पन्न, कुलसम्पन्न, स्वभाव से गम्भीर, विविध लब्धिवाले, संग्रहोपग्रह-कुशल (गण के योग्य-पात्र आदि के संग्रह तथा यथाविधि सब साधुओं को बांटने में निपुण) हेय-उपादेय के यथायोग अभ्यासी तथा प्रवचन के अनुरागी
होते हैं। प्रश्न ४५. गणधर किसे कहते हैं ? उत्तर-तीर्थंकरों के प्रधान शिष्य (गौतम स्वामी आदिवत्) गणधर कहलाते हैं
साधुओं की दिनचर्या आदि का पूर्णतया ध्यान रखनेवाले साधुओं को भी
गणधर कहा जाता हैं। प्रश्न ४६. गणावच्छेदक किसे कहते हैं? उत्तर-जो गण के निमित्त विहार क्षेत्र तथा उपकरणों की खोज करने के लिए
धैर्ययुक्त कुछ साधुओं के साथ आचार्य के आगे चलते हैं एवं सूत्रार्थ के विशेषज्ञ होते हैं, वे गणावच्छेदक कहलाते हैं।
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