________________
गण प्रकरण
१०३
प्रश्न ३२. गण में शांति रखने के लिए आचार्य-उपाध्याय को क्या-क्या
करना चाहिये? उत्तर–पांच कार्य करते रहने से गण में शांति रहती है --
१. आज्ञा-धारणा की सम्यक प्रवृत्ति करते रहने से। (इस कार्य में प्रवृत्ति करो' ऐसे विधान करना आज्ञा है और 'इस कार्य को मत करो' ऐसे निषेध करना धारणा है। २. रत्नाधिक साधुओं का उचित विनय करते एवं करवाते रहने से। ३. योग्य शिष्यों को निष्पक्ष भाव से शास्त्र पढ़ाते रहने से। ४. ग्लान, नवदीक्षित एवं रोगी साधुओं की उपयुक्त सेवा करवाते रहने से। ५. साधु-साध्वियों की सलाह लेकर दूर देश में विहार करने से। इन पांचों बातों पर जो आचार्य-उपाध्याय ध्यान नहीं रखते उनके गच्छ में
कलह-अशांति हो जाती है। प्रश्न ३३. आचार्य-उपाध्याय उत्कृष्ट कितने भव करते हैं ? उत्तर-निष्ठापूर्वक गण का प्रतिपालन करने वाले गुणसंपन्न आचार्यों-उपाध्यायों
के उत्कृष्ट तीन भव माने गये हैं। कई उसी भव में मोक्ष चले जाते हैं, कई दो भव कर लेते हैं किन्तु तीसरे भव का अतिक्रमण नहीं होता अर्थात्
तीसरे भव में तो मोक्ष अवश्य ही जाते हैं।२ प्रश्न ३४. आचार्य बनने वाला साधु कम से कम कितने वर्ष का दीक्षित
होना चाहिए? उत्तर-पांच वर्ष के दीक्षित साधु को आचार्यपद दिया जा सकता है लेकिन वह
आचारकुशल, संयमकुशल, प्रवचनकुशल, प्रज्ञप्ति (प्रायश्चित्त देने में) कुशल, संग्रह-उपसंग्रह कुशल, अक्षुण्णाचार, अशबलाचार, अभिन्नाचार, असंक्लिष्टाचार एवं दशाश्रुतस्कन्ध, बृहत्कल्प तथा व्यवहार सूत्र का
ज्ञाता अवश्य होना चाहिये। प्रश्न ३५. उपाध्याय किसे कहते हैं ? उत्तर-जिनके उपापत में मुनि धर्मशास्त्र का अध्ययन करते हैं, जो सम्यग्ज्ञान
दर्शन चारित्र से युक्त होते हैं, सूत्र-अर्थ-तदुभय की विधि के जानकार होते १. स्थानां. ५/५/४६
३. व्यवहार ७/२०, ३/५ २. भ.५/६/१४७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org