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साध्वाचार के सूत्र प्रश्न २८. गुणों की दृष्टि से आचार्य किसके समान होते हैं? उत्तर-१. आंवले के मधुरफल समान, २. द्राक्षा के मधुरफल समान, ३. क्षीर
के मधुरफल समान, ४. शर्करा (खांड) के मधुरफल (इक्षु) समान।। प्रश्न २६. बुद्धि एवं गुणों की दृष्टि से चार प्रकार के आचार्य कौन-कौन से
उत्तर-१. श्वपाककरण्डसमान-षट्प्रज्ञक गाथादि रूप सूत्रधारी एवं विशिष्ट
क्रियाहीन आचार्य। २. वेश्याकरण्डसमान-ज्ञान अधिक न होने पर भी वाग्आडम्बर से मुग्धजनों को प्रभावित करने वाले आचार्य। ३. गृहपतिकरण्डसमान-स्व-परमत के ज्ञाता एवं क्रियादि गुण युक्त आचार्य । ४. राजकरण्डसमान-आचार्य के सभी गुणों से संपन्न एवं साक्षात् तीर्थंकरदेवतुल्य आचार्य। इन चारों प्रकार के आचार्यों में प्रथम दो अयोग्य
एवं शेष दो सुयोग्य हैं। प्रश्न ३०. प्रभाव की दृष्टि से आचार्य के चार उदाहरण कौन-कौन से हैं ? उत्तर-१. आचार्य सालवत् और परिवार भी सालवत्-साल-वृक्षवत्-स्वयं
उत्तम श्रुतादियुक्त और शिष्यसमूह भी उनके समान विशालज्ञानसंपन्न है-२. आचार्य सालवत् और परिवार एरण्डवत्-(गर्गाचार्यवत्) स्वयं सालवृक्षवत् विशालश्रुतादि सम्पन्न किन्तु शिष्य-परिवार एरण्डवृक्षवत् श्रुतादि गुणविहीन ३. आचार्य एरण्डवत् और परिवार सालवत्(अंगारमर्दकवत्) स्वयं श्रुतादिहीन किन्तु शिष्य परिवार गुणसंपन्न ४. आचार्य एरण्डवत् और परिवार भी एरण्डवत्- स्वयं शिष्य परिवार सहित
श्रुतादि-विहीन । प्रश्न ३१. आचार्य के कितने प्रकार हैं? उत्तर-तीन प्रकार के आचार्य कहे गए हैं शिल्पाचार्य, कलाचार्य और धर्माचार्य ।
१. शिल्पाचार्य-जो शिल्पों के प्रवीणशिक्षक होते हैं, वे शिल्पाचार्य कहलाते हैं जैसे-सुनार, सुथार आदि। २. कलाचार्य-जो कलाओं को सिखाने वाले प्रधान-अध्यापक होते हैं, वे कलाचार्य कहलाते हैं, जैसे-नाटक, काव्य आदि। ३. धर्माचार्य-श्रुत-चारित्र रूप धर्म का स्वयं पालन करने वाले एवं दूसरों
को उसका उपदेश देने वाले गच्छनायक-मुनिराज धर्माचार्य कहलाते हैं। १. स्थानां. ४/३/४११
३. स्थानां. ४/४/५४३ २. स्थानां. ४/३/५४१
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