________________
गण प्रकरण
प्रश्न १२. आचार्य में और क्या-क्या विशेषता होनी चाहिए ?
उत्तर-आचार्य के छह कर्त्तव्य बतलाये गए हैं - १. सूत्रार्थ स्थिरीकरण - सूत्र के विवादग्रस्त अर्थों का निश्चय करना अथवा सूत्र और अर्थ में चतुर्विध संघ को स्थिर करना २. विनय - सबके साथ नम्रता से व्यवहार करना ३. गुरु पूजा - अपने से बड़े साधुओं की भक्ति करना ४. शैक्ष बहुमान - शिक्षा ग्रहण करनेवाले नवदीक्षित साधुओं का सत्कार करना ५. दानपति श्रद्धादान देनेवाले व्यक्तियों की उपदेशादि द्वारा श्रद्धा बढ़ाना ६. बुद्धिबल वर्द्धन - शिष्यों की बुद्धि तथा आध्यात्मिक शक्ति बढ़ाना ।
इसके अलावा अपने अंतेवासी शिष्य को चार प्रकार की विनय प्रतिपत्ति (चार प्रकार के विनय का प्रतिपादन करने की कला सिखाना भी आचार्य के लिए आवश्यक है। आचार्य को छह गुणों से सम्पन्न होना चाहिए(१) श्रद्धा सम्पन्न (२) सभी तरह से सच्चा (३) मेधावी (४) बहुश्रुत (५) शक्तिमान। (६) स्वपक्ष- परपक्ष के विग्रह से दूर रहने वाला । '
प्रश्न १३. चार प्रकार के विनय कौन-कौन से है ?
उत्तर - चार विनय इस प्रकार हैं - १. आचारविनय २. श्रुतविनय ३. विक्षेपणाविनय ४. दोषनिर्घातनाविनय । ३
६६
प्रश्न १४. आचार विनय क्या है ?
उत्तर - आचारविनय की शिक्षा में आचार्य अपने शिष्य को ये चार बातें सिखाते हैं - १. साधु को सत्रह प्रकार के संयम में सुदृढ़ रखना। २. बारह प्रकार की तपस्या में प्रोत्साहित करना। ३. गण की सारणा - वारणा करते हुए रोगी, बाल, वृद्ध एवं दुर्बल साधुओं की उचित व्यवस्था करना । ४. योग्य साधुओं को एकाकीविहार - प्रतिमा स्वीकार करने के लिए प्रेरित करना । * प्रश्न १५. श्रुत विनय की शिक्षा में आचार्य अपने शिष्य को श्रुत संबंधी क्या शिक्षा देते है ?
उत्तर - श्रुतविनय की शिक्षा में आचार्य अपने शिष्य को पढ़ाने की विधि सिखाते हैं। जैसे- पहले मूलसूत्र पढ़ाना, फिर अर्थ पढ़ाना, विद्यार्थी का हित हो वह पढ़ाना एवं फिर प्रमाण-नय-निक्षेपादि द्वारा तत्त्व को सांगोपांग समझना । ५
१. स्थानांग ६/५७ टीका
२. स्थानांग ६ / १
३. दसाओ ४ / १४
Jain Education International
४. दसाओ ४/१५
५. दसाओ ४ / १६
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org