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साध्वाचार के सूत्र
प्रश्न ८. वाचना संपदा से क्या तात्पर्य है ? भेदों सहित स्पष्ट करे। उत्तर-शिष्यों को पढ़ाने की योग्यता को वाचनासंपदा कहते हैं। वह चार प्रकार
की है—(क) विचयोद्देश-किस शिष्य को कौन-सा शास्त्र किस प्रकार पढ़ाना, इस बात का ठीक-ठीक निर्देशन करना अर्थात् शिष्यों का पाठ्यक्रम निश्चित करना। (ख) विनयवाचना-शिष्यों को निश्चित पाठ्यक्रम के अनुसार पढ़ाना। (ग) परिनिर्वाप्यवाचना-शिष्य जितना ग्रहण कर सके उसे उतना ही पढ़ाना। (घ) अर्थनिर्यापकत्व-प्रमाण-नय कारकसमास-विभक्ति आदि द्वारा शास्त्रों के अर्थों की संगति बिठाते हुए एवं
पूर्वापर संबंध को समझाते हुए पढ़ाना।' प्रश्न ६. मति संपदा किसे कहते है ? उसके चार भेदों के नाम लिखो। उत्तर-मति संपदा मतिज्ञान की उत्कृष्टता को मतिसंपदा कहते हैं। उसके चार
भेद हैं-अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा। प्रश्न १०. प्रयोगमति संपदा किसे कहते है ? उसके चार भेद कौन-कौन से
उत्तर-शास्त्रार्थ या विवाद के लिए अवसर आदि की जानकारी को प्रयोगमति
संपदा कहते हैं। इसके चार भेद ये हैं-(क) अपनी शक्ति को समझकर एवं भावी सफलता को ध्यान में रखकर शास्त्रार्थ करना। (ख) सभा की विद्वत्ता एवं मूर्खता पर पूरा विचार करके शास्त्रार्थ करना। (ग) जहां शास्त्रार्थ करना है, उस क्षेत्र में अनुकूलता कैसी है इस बात पर गौर करके शास्त्रार्थ करना। (घ) शास्त्रार्थ के विषय को अच्छी तरह समझकर अर्थात् स्वपक्ष
परपक्ष के तर्कों-वितर्कों का पूरी तरह अवगाहन कर शास्त्रार्थ में प्रवृत्त होना। प्रश्न ११. संग्रह परिज्ञा संपदा को भेदों सहित स्पष्ट करें? उत्तर-शेषकाल एवं चातुर्मास के लिए मकान-पाट-वस्त्र-पात्र आदि का कल्प के
अनुसार संग्रह करना संग्रहपरिज्ञासंपदा है। इसके भी चार प्रकार हैं-(क) साधुओं के लिए चातुर्मासार्थ स्थान का निरीक्षण करना। (ख) पीठफलक-शय्या-संथारे का ध्यान रखना। संघ कि उपयोग में आने वाले उपकरण आदि का संग्रह (ग) समयानुसार साधु के सभी आचारों का विधिपूर्वक स्वयं पालन करना एवं दूसरों से करवाना। (घ) अपने से बड़ों
का यथाविधि विनय करना। १. दसाओ ४/८
३. दसाओ ४/१२ . २. (क) दसाओ ४/६
४. (क) दसाओ ४/१३ (ख) स्थानां. ८/१५/टि. १६
(ख) स्थानां. ८/१५/टि. १६
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