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गण प्रकरण
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ठहरना)। (घ) अपना स्वभाव प्रौढ़ व्यक्तियों के समान गंभीर रखना।
(कम उम्र होने पर भी गम्भीर विचार रखना)।' प्रश्न ५. श्रुत संपदा कौन सी है ? उसके चार भेद बताएं? उत्तर-बहुत शास्त्रों का विशद ज्ञान होना श्रुतसंपदा है। इसके चार प्रकार
हैं--(क) बहुश्रुत-बहुत शास्त्र पढ़कर उनके तत्त्वों को भली-भांति समझ लेना एवं उसे समझाने में समर्थ होना। (ख) परिचितश्रुत-शास्त्रों को अपने नाम की तरह याद रखना अर्थात् विशिष्ट धारणाशक्तिवाला होना तथा स्वाध्याय का अभ्यासी होना। (ग) विचित्रश्रुत-स्व-पर मत के तलस्पर्शी अध्ययन द्वारा अपने शास्त्रीय ज्ञान में विचित्रता प्राप्त कर लेना। (घ) घोषविशुद्धिश्रुत-शास्त्र का उच्चारण करते समय उदात्त-अनुदात्त
स्वरित, ह्रस्व-दीर्घ-प्लुत एवं स्वरों-व्यंजनों का पूरा ध्यान रखना। प्रश्न ६. शरीर सम्पदा से आप क्या समझते है ? उनके भेदों को स्पष्ट करें। उत्तर-शरीर का सुसंगठित और प्रभावशाली होना शरीरसंपदा है। इसके चार
लक्षण हैं-(क) आरोह-परिणाहसंपन्न-शरीर की लम्बाई-चौड़ाई का प्रमाण युक्त होना। (ख) अनवत्रपशरीर- शरीर का अलज्जास्पद होना (जिसे देखकर घृणा उत्पन्न न हो)। (ग) स्थिरसंहनन-शरीर का स्थिर संगठन होना (ढीला-ढाला न होना)। (घ) प्रतिपूर्णेन्द्रिय-इन्द्रियों की परिपूर्णता का होना (कान-आंख आदि में कमी न होना)। आने वाले व्यक्ति पर सबसे पहले शारीरिक सौन्दर्य का ही प्रभाव पड़ता है। केशीकुमार श्रमण और अनाथीमुनि के शरीर की सुन्दरता ने ही राजा प्रदेशी और सम्राट श्रेणिक को आकृष्ट किया था अतः आचार्य के लिये
इस आवश्यक माना गया है। प्रश्न ७. वचन संपदा किसे कहते हैं ? उसके भेदों को समझाइये। उत्तर-मधुर, प्रभावशाली एवं आदेय वचन का होना वचनसंपदा है। इसके चार
भेद हैं-(क) आदेय वचन-वचन जनता द्वारा ग्रहण करने योग्य होना चाहिये। (ख) मधुरवचन-गणी के वचन में मधुरता-कर्णप्रियता एवं अर्थगाम्भीर्य होना चाहिये। (ग) अनिश्रित वचन-वाणी क्रोधादि कषाय से रहित होनी चाहिये। उन्हें आवेश में आकर नहीं बोलना चाहिए। (घ) असंदिग्धवचन-वाणी ऐसी होनी चाहिये जिसे सुनकर श्रोता के मन में
सन्देह उत्पन्न न हो।४ १. (क) दशाश्रुत स्कन्ध (ख) दशा४/४ (ख) स्थानांग ८/१५/टि. १६
स्थान टिप्पण ८/१५/टि. १६ ३. दसाओ ४/६ २. (क) दसाओ ४/५
४. दसाओ ४/७
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