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प्रश्न १. क्या साधुओं में भी विशेष पद होते हैं ?
उत्तर- गच्छ - गण या संघ की व्यवस्था के लिए योग्य व्यक्ति को दिये जाने वाले विशेष- अधिकार का नाम पद है। जैन संघ में साधुओं की योग्यतानुसार सात पद निश्चित किये गये हैं- १. आचार्य, २. उपाध्याय ३. प्रवर्तक ४. स्थविर ५. गणी ६. गणधर ७. गणावच्छेदक । '
१३. गण प्रकरण
प्रश्न २. आचार्य किसे कहते हैं ?
उत्तर - जो पांच प्रकार के आचार का पालन करते हैं, प्रकाश करते हैं-तत्त्व समझाते हैं एवं उनके पालन का उपदेश देते हैं, जो सूत्र और अर्थ के जानकार होते हैं, आचार्य के शास्त्रोक्त लक्षणों से युक्त होते हैं, गण के मेढीभूत (आधारभूत) होते हैं एवं गण की चिन्ता से मुक्त होकर ( योग्य शिष्य को अपना काम सौंपकर ) शास्त्रों के अर्थ की वाचना देते हैं, वे आचार्य कहलाते हैं ।
प्रश्न ३. आचार्य की आठ सम्पदा कौन कौन सी है ?
उत्तर- (१) आचार संपदा (२) श्रुत संपदा (३) शरीर संपदा (४) वचन संपदा (५) वाचना संपदा (६) मति संपदा (७) प्रयोगमति संपदा (८) संग्रह परिज्ञा संपदा । २
प्रश्न ४. आचार संपदा क्या है ? उसके कौन कौन से चार भेद हैं ?
उत्तर - चारित्र की विशेष दृढ़ता को आचारसंपदा कहते हैं। इसके चार भेद हैं - (क) संयम में ध्रुवयोगयुक्त होना अर्थात् संयम की प्रत्येक क्रिया में मन-वचन-काया को स्थिरता पूर्वक लगाना। (ख) गणी की उपाधि मिलने पर या संयम की प्रधानता के कारण मन में अभिमान न करना - सदा नम्र रहना । (ग) अप्रतिबद्ध विहार करते रहना । ( एक स्थान पर अधिक न
(ख) दसाओ ४ / ३
१. स्थानां. ३/३/३६२
२. (क) स्थानां. ८/१५/१६
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