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११. विहार प्रकरण
प्रश्न १. साधुओं को विहार क्यों करना चाहिए? उत्तर-एक स्थान में रहने से आलस्य-प्रमाद बढ़ता है, लोगों से स्नेह-परिचय हो
जाता है, संयम में शिथिलता की संभावना बढ़ जाती है एवं साधु सुखसुविधावादी बन जाते हैं। ग्रामानुग्राम विहरण से लोगों का उपकार होता है, धर्म का प्रचार होता है, नये-नये अनुभव होते हैं एवं साधु निर्लेप रहते हुए सहनशील बनते हैं अतएव भगवान् ने साधुओं को नवकल्पविहारी कहा है। आठ मास के आठ कल्प एवं चातुर्मास का एक कल्प-ऐसे नव कल्प माने गये हैं। सामान्य अवस्था में इन कल्पों का भंग करके जो साधु
एक ही स्थान में नियतवास करते हैं, वे प्रायश्चित्त के भागी होते हैं।' प्रश्न २. साधु-साध्वियां कौन-कौन से क्षेत्रों में विहार कर सकते हैं? उत्तर-जहां ज्ञान-दर्शन-चारित्र की वृद्धि होती हो अर्थात् शुद्ध साधुपना पल
सकता हो, उन सभी क्षेत्रों देशों में साधु-साध्वियां विहार कर सकते हैं। प्रश्न ३. क्या साधु-साध्वियां विकट देश में विहार कर सकते हैं? उत्तर-साधु कर सकते हैं लेकिन साध्वियां नहीं कर सकतीं। (जहां चोर, जार
एवं अनार्य लोगों की बहुलता हो, उसे विकट देश कहते हैं)। प्रश्न ४. क्या साधु सिर ढककर विहार कर सकते हैं ? उत्तर-साधु सिर ढककर विशेष कारण (जैसे-वर्षा, ओस, धुअर आदि) के
सिवाय विहार नहीं कर सकते है।२ । प्रश्न ५. विहार करते समय रास्ते में सचित्त पृथ्वी-पानी-वनस्पति आदि आ
जाए तो? उत्तर-आसपास में दूसरा शुद्ध मार्ग हो तो उस मार्ग से जाना चाहिए। दूसरे मार्ग
की व्यवस्था न हो और जाना जरूरी हो तो जाने की विधि इस प्रकार
२. निशीथ २/६६
१. (क) निशीथ २/३७
(ख) आ. २ अ.२, उद्दे. २, सू. ४३३
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