________________
साध्वाचार के सूत्र
है-मार्ग में पृथ्वी-पानी हो तो पानीवाले मार्ग से नहीं जाना। (उसमें त्रस एवं वनस्पति की भी हिंसा है) पृथ्वी-वनस्पति हो तो वनस्पतिवाले मार्ग से नहीं जाना। (उसमें अनन्त जीवों की हिंसा भी हो सकती है) पृथ्वी
त्रस हों तो पृथ्वी वाले मार्ग से जाना। प्रश्न ६. एक मार्ग में हरियाली हो, दूसरे मार्ग में पानी हो। पानी और
हरियाली दोनों ही जीव हैं? उत्तर-दोनों में जीव होने पर भी पहले पानी वाले मार्ग में न जाए। यदि दूसरा
रास्ता ही न हो तो पानी वाले मार्ग को पार कर सकते हैं। क्योंकि पानी में
हरियाली (निगोद की नियमा) भी है। प्रश्न ७. साधु-मार्ग में छोटी या बड़ी नदी आ जाए तो क्या साधु नदी में
चलकर उसे पार कर सकता है? उत्तर-दूसरा मार्ग हो तो थोड़ा चक्कर लेकर उस मार्ग से जाना चाहिए। जहां
तक हो सके नदी को पैरों से पार नहीं करना चाहिए। दूसरा विकल्प न हो
तो नदी भी पार कर सकते हैं। प्रश्न ८. नदी पार करने की क्या विधि है ? उत्तर-भण्डोपकरणों को व्यवस्थित कर अपने शरीर का प्रमार्जन करना चाहिए
एवं फिर सागारिक अनशन अर्थात् जल में रहना हो तब तक चारों आहार का त्याग कर एक पैर जल से ऊपर एवं एक पैर जल में रखते हुए नदी
आदि के जल से पार होना चाहिए। प्रश्न है. नदी आदि पार करने की क्या कोई मर्यादा भी है ? उत्तर-जिसमें थोड़ा जल हो एवं जिसमें पूर्वोक्त विधि से चला जा सके ऐसी
छोटी नदी एक मास में दो-तीन बार तक पार की जा सकती है। लेकिन जिनमें अधिक गहरा जल हो, वैसी गंगा, यमुना, सरयू, कोसिका, मही ये पांच बड़ी नदियां (इन जैसी दूसरी भी) एक मास में केवल एक बार एवं वर्ष में उत्कृष्ट नौ बार (नौका या पैरों द्वारा) पार की जा सकती हैं। इन पांच कारणों से अपवाद रूप में नदी पार करने की आज्ञा भी दी गई है
१. राजा आदि के भय से। १. ओघ नियुक्ति ४३ से ४५
४. (क) बृहत्कल्प ४।२६ २. आ. श्रु. २. अ. ३ उद्दे. २/३४
(ख) स्थानांग ५/२/६८ ३. स्थानांग ५/२/६८
५. स्थानांग ५/२/६८
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org