________________
१०. प्रवास प्रकरण
प्रश्न १. साधु-साध्वियों के निवास-स्थान-संबंधी नियमों में क्या अन्तर है? उत्तर-शीलरक्षा की दृष्टि से नियमों में कुछ अन्तर रखा गया है। जैसे-साधु
बाजार में दुकानों पर ठहर सकते हैं, साध्वियां नहीं ठहर सकतीं। परिस्थितिवश ठहरना पड़े तो द्वार पर वस्त्र का पर्दा लगाकर ठहरना आवश्यक है। साधु स्वतंत्र रूप से चाहे जहां ठहर सकते हैं किन्तु साध्वियां शय्यातर या अन्य किसी विश्वासी गृहस्थ की निश्राय
जिम्मेवारी के बिना नहीं ठहर सकतीं। प्रश्न २. क्या साधु-साध्वियां एक ग्राम आदि में एक साथ ठहर सकती हैं? उत्तर-जिस ग्राम, नगर या राजधानी में एक ही कोट एवं एक ही दरवाजा
(निकलने-प्रवेश करने का मार्ग) हो वहां साधु-साध्वियों को एक साथ
एक ही समय रहना नहीं कल्पता । अनेक मार्ग हों तो रहा जा सकता है। प्रश्न ३. क्या साधु साध्वियों के स्थान पर जा सकते हैं? उत्तर-आवश्यकता हो तो उचित समय में जा सकते हैं। साध्वियों के स्थान पर
खंखारा आदि द्वारा सूचना दिये बिना नहीं जाना चाहिए। प्रश्न ४. क्या साधु उपाश्रय में ठहर सकते हैं? उत्तर-जैन परम्परानुसार जहां बैठकर सामायिक-पौषध आदि धर्म-क्रिया की
जाए, उस स्थान-मकान का नाम उपाश्रय है। गृहस्थों ने अपनी धर्मक्रिया करने के लिए उपाश्रय बनाया हो तो उसमें साधु ठहर सकते हैं लेकिन यदि
साधु के लिए बनाया हो तो उसमें साधु को रहना नहीं कल्पता। प्रश्न ५. साधुओं के लिए उपाश्रय कैसा होना चाहिए? उत्तर-श्मशान, सूनाघर, वृक्ष का मूल (वृक्ष के नीचे) तथा गृहस्थों ने जो अपने
१. (क) बृहत्कल्प १/१२-१५/२३३१
(ख) बृहत्कल्प १/२२ से २४ २. बृहत्कल्प २/८/२१३२
३. निशीथ ४।२२ ४. आ. श्रु. २ अ. २. उद्दे. २/४४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org