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साध्वाचार के सूत्र
शुद्धस्थान हो, निर्दोष शय्या-संस्तारक एवं आहार-पानी सुलभता से प्राप्त हो सके वहां चातुर्मास करना चाहिए। इन वस्तुओं का योग न हो वहां
चातुर्मास नहीं करना चाहिए।' प्रश्न ११. साधु-साध्वियां एक गांव में अधिक से अधिक कितने दिन ठहर
सकते हैं? उत्तर-सामान्यतया चातुर्मास में चार मास (अधिक मास गिनती में नहीं) एवं
शेषकाल में साधु एक मास और साध्वियां दो मास ठहर सकती हैं। बड़े शहरों में अलग-अलग (पाड़े उपनगर अथवा बस्तियां) हों तो प्रत्येक में एक एवं दो मास ठहरा जा सकता है लेकिन जहां ठहरना हो वहीं गोचरी करनी चाहिए। अगर गोचरी का कल्प अलग न रखा जाए तो अलग
अलग ठहरना भी नहीं कल्पता। प्रश्न १२. एक बार चातुर्मास या शेषकाल (१-२ मास) की संपन्नता पर
विहार करने के बाद फिर उस स्थान में साधु-साध्वी आ सकते हैं या
नहीं? उत्तर-जहां चातुर्मास किया है, दो वर्ष तक उस स्थान में पुनः चातुर्मास करना
नहीं कल्पता। शेषकाल में जहां साधु एक पूर्ण मास (साध्वियां दो मास) रह जायें तो वहां पुनः दो मास तक नहीं आ सकते एवं रास्ते चलते आ जाए तो एक-दो रात्रि से अधिक ठहरना नहीं कल्पता। साधु यदि छब्बीस दिन ठहर कर दूसरे गांव चले जायें एवं वहां कुछ दिन ठहरकर फिर उसी गांव में आकर ठहरना चाहें तो परम्परा के अनुसार यह विधि है कि दूसरे गांव में जितने दिन ठहरकर आए हों उनके आधे दिन और चार दिन मिलाकर जितने दिन होते हैं, उतने दिन ठहर सकते हैं अर्थात् दस दिन बाहर रहकर आए हों तो पांच एवं चार पहले वाले–ऐसे नौ दिन पुनः ठहरा जा सकता है। लेकिन यदि सत्ताईस दिन ठहर कर विहार करें एवं कुछ दिन बाहर रहकर वापस आएं तो केवल तीन दिन ठहर सकते हैं क्योंकि सत्ताईस दिन का लघुमास कहलाता है अतः पिछली विधि काम नहीं आती। साध्वियां यदि उत्कृष्ट ५२ दिन ठहर कर दूसरे गांव चली जाएं तो वहां जितने दिन रहें उतने ही दिन अधिक पूर्वक्षेत्र में वापस आकर ठहर सकती हैं किन्तु ५४ दिन ठहर जाने के बाद छह दिन से अधिक
ठहरना नहीं कल्पता। १. आचां, श्रु. २, अ. २, उद्दे. १/३ ३. (क) दसवें चूलिका २/११ २. बृहत्कल्प १/६,७,८,६
(ख) अचू. पृ. २६७
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