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चातुर्मास प्रकरण
जाती है इत्यादि कारणों को लेकर चातुर्मास में विहार करने का निषेध है। प्रश्न ८. विशेष परिस्थिति उत्पन्न हो जाएं तो क्या साधु चातुर्मास में विहार
कर सकते हैं? उत्तर-विशेष उपस्थिति में विहार किया जा सकता है।' १. राजविरोध युद्ध
आदि होने से विहार किया जा सकता है। २. दुर्भिक्ष होने से भिक्षा न मिलने जैसी स्थिति में। ३. कोई ग्राम से निकाल दे (राजाज्ञा न हों तो)। ४. बाढ़ आ जाय। ५. जीवन और चारित्र का नाश करने वाले अनार्यदुष्ट पुरुषों का उपद्रव हो तो। ६. ज्ञानार्थी होकर अर्थात् कोई अपूर्वशास्त्रज्ञानी आचार्यादि अनशन कर रहे हों एवं उस शास्त्र-ज्ञान के विच्छेद होने की संभावना हो ऐसी परिस्थिति में उसे प्राप्त करने के लिए। ७. दर्शनार्थी होकर अर्थात् जैन दर्शन की प्रभावना करने वाले शास्त्रज्ञान की प्राप्ति के लिए। ८. चारित्रार्थी होकर अर्थात् अपने चातुर्मास वाला क्षेत्र अनेषणा एवं स्त्री आदि के दोषों से दूषित होने पर चारित्र की रक्षा के लिए। ९. आचार्य-उपाध्यायादि के काल करने पर परिस्थितिवश दूसरे गच्छ (वर्ग) में जाना आवश्यक हो जाने पर। १०. आचार्य-उपाध्याय
रोगी आदि की वैयावृत्त्य सेवा करने के लिये गुरु आदि के भेजने पर। प्रश्न ६. चातुर्मास समाप्त होने के बाद क्या साधु-साध्वी उसी क्षेत्र में ठहर
सकते हैं? उत्तर-सामान्यतया मासकल्प एवं चातुर्मास करने के बाद विहार करना जरूरी
है। लेकिन अधिक वर्षा के कारण यदि मार्ग में विशेष-जीवहिंसा की संभावना हो तो १० तथा १५ दिन चातुर्मास के बाद भी ठहर सकते है।३ इसी आगम-विवरण के आधार पर यदि कोई दीक्षार्थी हो तो उसे दीक्षा देने के लिये चातुर्मास एवं मासकल्प के बाद भी १०-१५ दिन अधिक ठहरने की परम्परा है। समाधान इस प्रकार किया जाता है कि यदि जीवदया के लिये चातुर्मास के बाद ठहरा जा सकता है तो जीव-दया पालने वाला साधु बन रहा हो तो उसके लिये अधिक ठहने में भी कोई
दोष नहीं है। प्रश्न १०. साधुओं को चातुर्मास कहां करना चाहिए? उत्तर-जहां पठन-पाठन एवं स्वाध्याय-ध्यान तथा मल-मूत्र विसर्जन का
३. आचा. श्रु. २ अ. ३ उदे. १/४-५
१. स्थाना. ५/२/६६-१०० २. निशीथ २/३६
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