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भावभूमि
२१ प्रारम्भ बाहर से ही करें। आत्मा का शब्दार्थ है- स्व । स्व का सबसे स्थूल दृश्यमान रूप है-शरीर। हम स्व को जानने के लिए शरीर से प्रारम्भ करें। शरीर का विषय रहस्यवादी नहीं है। विज्ञान ने शरीर के बारे में ढेरों जानकारी इकट्ठी कर ली है। चिकित्साशास्त्रियों ने लाखों प्रयोग करके शरीर की एक-एक गुत्थी को सुलझाया है। यह बात दूसरी है कि शरीर की पूरी गुत्थी अभी भी सुलझी नहीं है, पर बहुत सारे तथ्य हमारे सामने आ चुके हैं। शरीर का एक दूसरा पक्ष भी है। हम शरीर को जैसा देखते हैं-वह विज्ञान का विषय है। हम शरीर को जैसा अनुभव करते हैं-वह अध्यात्म का विषय है। विज्ञान यंत्रों से देखता है, अध्यात्म चित्त की एकाग्रता से अनुभव करता है। परीक्षण और अनुभव का सामंजस्य पूर्ण सत्य को प्रकट कर देता है। विज्ञान देखता है, लेकिन उसे सुख-दुःख कहीं दिखाई नहीं देते, वेदना को हम केवल अनुभव से जान सकते हैं, प्रयोगशाला में वह दिखाई नहीं देती।।
शरीर के बारे में विज्ञान क्या बताता है हम उसे जानें और चित्त को एकाग्र कर शरीर को देखें भी, शरीर का अनुभव भी करें। यह सारा व्यायाम सत्य को जानने के लिए है। इसका बहुत बड़ा लाभ है। शरीर को जानकर हम शरीर को स्वस्थ, सुन्दर, निरोग, चुस्त तथा कार्यक्षम बना सकते हैं। हम जैसे-जैसे शरीर को जानेंगे हमें पता लगेगा कि अपने शरीर को हमने ही बनाया है किसी और ने नहीं और हम ही इसे आज भी बना रहे हैं। हम इसे जैसा चाहे बना सकते हैं। कहते हैं मनुष्य अपने भाग्य का स्वयं निर्माता है और यह भी कहा जाता है कि पहला सुख निरोगी काया है तो देखना है कि क्या अपने शरीर को रोगी या निरोगी हम स्वयं बनाते हैं या कोई और। आधुनिक विज्ञान का उत्तर है कि अपने शरीर को रोगी भी हम स्वयं बनाते हैं और स्वस्थ भी हम स्वयं बनाते हैं। अध्यात्म तो पहले से ही यह कह रहा है कि अपने सुख-दुःख के लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं-अप्पा कत्ता विकत्ता य दुहाण य सुहाण य। शरीर के संबंध में विज्ञान और अध्यात्म में अद्भुत सहमति है। जरा उस सहमति पर ध्यान दें। शरीर और मन का संबंध
विज्ञान और अध्यात्म की प्रथम सहमति इस बारे में है कि हमारा कोई विचार या भाव ऐसा नहीं जो अपने समानान्तर भौतिक स्तर पर भी कोई न कोई अनुकूल या प्रतिकूल परिवर्तन न लाता हो और न कोई भौतिक स्तर पर होने वाला परिवर्तन ऐसा है जो हमारे विचारों या भावों को प्रभावित न करता हो। यह सूत्र बहुत महत्त्वपूर्ण है, बल्कि सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण यही सूत्र है। प्रत्येक भाव के साथ द्रव्य जुड़ा है और प्रत्येक द्रव्य से भाव जुड़ा है। हम
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