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महाप्रज्ञ-दर्शन
व पारिमाणिक नहीं, गुणात्मक है। पचास हजार रुपये हैं। बीस आदमी सगे हैं और बीस आदमी परिवार के हैं। जिनमें यह भाव आया कि ममत्व विसर्जन करना है उसने अपना संग्रह कम कर लिया । वह संग्रह से संबंध विच्छेद कर वैसा कर सकता है ।
मुनिश्री - ममत्व विसर्जन यदि दानात्मक हो तो कटुता आ सकती है, किंतु त्यागात्मक हो तो उसकी संभावना नहीं दिखाई देगी। दान और त्याग में बड़ा अंतर है। दान में अहं बद्ध होता है जबकि त्याग में वह मुक्त हो जाता है। ममत्व के साथ जुड़े भय और चिंता निर्ममत्व के साथ जुड़कर अभय और निश्चिंतता में बदल जाते हैं । यह मन की शान्ति का अमोघ सूत्र है ।
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