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________________ महाप्रज्ञ-जैनेन्द्र-सम्वाद ३४६ विस्तार का पहला सूत्र है-विचार की स्पष्टता या सम्यक् दर्शन। दूसरा सूत्र है-संकल्प का उपयोग । संकल्प की भाषा निश्चित और समय दीर्घ होना चाहिए। उतना दीर्घ कि उसे दोहराते-दोहराते उसमें तन्मयता आ जाए। भाषा का आकार एक होने से उत्तरोत्तर स्पष्टता आती है। आज कुछ, कल कुछ, परसों कुछ, इस प्रकार भाव-भाषा भिन्न होने से धारणा में दृढ़ता नहीं आती है। भाषा, भाव, स्थान और समय की निश्चितता अवश्य प्रभाव लाती है। जैनेन्द्र- संकल्प में कर्तृत्व सहायक नहीं, बाधक बनता है। "मैं प्रेम का हूँ', “मैं प्रेम का हूँ"-इसमें महत्त्व प्रेम को मिलेगा। "मेरा प्रेम बढ़ रहा है" इसमें जो कर्तृत्व है, वह अन्त में बाधक बन जाएगा। कर्तृत्व अपने पास न रहे तो क्षमता का विस्तार हो सकता है। भजन में प्रणिपात की भावना से तृप्ति मिलती है। वही सब है, मैं शून्य हो जाऊं। इसमें आत्म-गुणता, तत्समता का रास्ता सरल हो जाता है। मैं सब बनने में हाथ फैलाता हूँ। मुनिश्री- ध्यान की प्रक्रिया यही है। एक ध्येय है। मैं अपने आप में इतना शून्य हो जाऊं कि वह मुझमें समाविष्ट हो जाए। ध्येय-आविष्ट का अर्थ है-ध्यान । आचार्य रामसेन ने इस शून्यीकरण को बहुत महत्त्व दिया है। उन्होंने लिखा हैयदा ध्यानबलाद् ध्याता, शून्यीकृत्य स्वावग्रहम्। ध्येयस्वरूपाविष्टत्वात्, तादृक् संपद्यते स्वयम् || जैनेन्द्र- (प्रश्न को स्पष्ट करते हुए कहा)-प्रश्न महत्वपूर्ण है। एक परिवार का सदस्य है। वह अपने ममत्व का विस्तार करना चाहता है तो पहले वह सगे रिश्तेदारों से आगे कम रिश्तेदारों से अपना ममत्व बांटता है, फिर उससे आगे। इस प्रकार यदि वह क्रमिक और आंकिक विस्तार करता है तो परिवार में दिक्कत पैदा होती है। एक बार सवाल आया-व्यक्ति से विराट् बनना चाहिए। विराट् तो अनन्त है, वह कैसे होगा? विराट् बनना नहीं है, अहंशून्य हो जाए तो फिर उसकी सीमा कहाँ रह गई ? अनन्त तक विराट् हो जाएगा। एक गिलास दूध में एक चम्मच शक्कर डालने से वह सारे गिलास में फैलेगी, उसके आठवें भाग में नहीं। विस्तार की प्रक्रिया आंकिक़ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003049
Book TitleMahapragna Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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