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विभूत्यधिकरणम्
० साधनायाः फलमित्यधिकृत्य ० कषायाभावः
साधना का प्रयोजन है-कषाय का विवेक, कषाय को दूर करना। कषाय का अर्थ है-क्रोध, मान, माया, लोभ । यदि हम साधना करते हैं तो उसकी निष्पत्ति के रूप में कषाय का विवेक नहीं होता, कषाय की कमी नहीं होती तो मान लेना चाहिए कि साधना फलित नहीं हो रही है। यदि कषाय क्रमशः दूर होते चले जा रहे हों तो मान लेना चाहिए कि साधना ठीक दिशा की ओर गतिशील है, वह क्रमशः सफलता की ओर बढ़ रही है।
० शरीरावरोधनिवारणं प्राणशक्तिसंतुलनञ्च
__ शरीर के अवयवों के अवरोध मिट जाते हैं। असंतुलित प्राणशक्ति संतुलित हो जाती है, विद्युत् का प्रवाह संतुलित हो जाता है। चैतन्य केन्द्रों के अवरोध मिट जाते हैं।
० भावात्मकं परिवर्तनञ्च
प्रेक्षाध्यान का मुख्य उद्देश्य है-भावात्मक परिवर्तन । भाव का संबंध कर्मों के साथ है। वे भाव विकृतियां और बीमारियां पैदा करते हैं। भावों में परिवर्तन आने पर विकृतियां और बीमारियां मिट जाती हैं।
० सुप्तशक्तिजागरणञ्च
लयबद्ध श्वास से मस्तिष्क की सुप्त शक्तियां जागती हैं। सारा तंत्र उससे प्रभावित होता है। लयबद्ध चलना, बोलना, श्वास लेना-ये शक्ति जागरण के प्रेरक तत्व हैं।
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