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विभूत्यधिकरणम्
ग्रन्थिस्राव संतुलनञ्च
ग्रन्थियों का स्राव "हुं" के उच्चारण से संतुलित हो जाता है। मस्तिष्क अस्त-व्यस्त होता है। एक शब्द का जप शुरु होता है और मस्तिष्क व्यवस्थित हो जाता है ।
० स्मृतिविकासश्च
मंत्र की आराधना से स्मृति का विकास होता है, बौद्धिक शक्तियों का विकास होता है और अनुभव की चेतना जागती है ।
० मनः प्रसादश्च
जब मंत्र सिद्ध होने लगता है तब कुछ निष्पत्तियां हमारे सामने प्रकट होती हैं। पहली निष्पत्ति है - मन की प्रसन्नता । दूसरी निष्पत्ति है - मानसिक
संतोष ।
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मस्तिष्कविश्रमश्च
"ओम्" का उच्चारण होता है, अल्फा तरंगें पैदा हो जाती हैं और मस्तिष्क रिलेक्स हो जाता है।
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०
रोगमुक्तिश्च
जप करने वाला या मंत्र की आराधना करने वाला व्यक्ति क्षय, अरुचि, अग्नि-मंदता आदि-आदि बीमारियों पर नियंत्रण पा लेता है ।
०
अपूर्वानन्दानुभूतिश्च
साधना करते-करते जब अरुण रंग या श्वेत रंग के स्पंदन जागते हैं तब अपूर्व आनंद की अनुभूति होने लगती है ।
०
ग्रन्थिषु व्यवस्थितिश्च
थायरायड ग्रंथि पर ब्लू रंग का ध्यान कराया गया । थायरायड की सक्रियता कम हुयी। जिसकी पिच्यूटरी ग्लैण्ड कमजोर हो जाती है, उसके लिए हरा रंग चमत्कारी होता है।
० शान्ति - पवित्रता - स्फूर्ति-शुद्धयश्च
शांति और पवित्रता के लिए श्वेत रंग प्रभावशाली होता है। सक्रियता और स्फूर्ति के लिए लाल रंग प्रभावशाली होता है। पीला रंग बौद्धिक विकास और भावना शुद्धि का प्रतीक है । हरा रंग विषापहारक होता है। नीला रंग अध्यात्म विकास का प्रेरक है।
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