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रूपान्तरणप्रक्रियाधिकरणे मनःपादः ० वैराग्येण समता
वैराग्य से जीवन में समता घटित होती है। लेश्याभावयोश्शोधनं, न तु नियन्त्रणम्
भाव और लेश्या के क्षेत्र में नियंत्रण नहीं, शोधन होता है। ० भावा आध्यात्मिकाः । ० ते जीवनमूलाः
क्रोध, मान, माया, लोभ-ये भाव हैं, आध्यात्मिक हैं। क्षमा आदि भी भाव हैं-आध्यात्मिक हैं। आध्यात्मिक का अर्थ है भीतर से होने वाला। क्रोध और क्षमा दोनों भाव हैं। भाव के आधार पर जब विश्लेषण किया जाता है, तभी सम्पूर्ण जीवन को समझा जा सकता है, और सच्चाई को जाना जा सकता है। ० वीतरागता भावशुद्धिः
भाव विशुद्धि का अर्थ है-चित्त की निर्मलता, राग-द्वेष मुक्त चित्त की स्थिति। जब भाव शुद्धि घटित होती है तब भीतर से जो संस्कार उभर कर आते हैं, उन सबका उपशमन होता है, वे धीरे-धीरे क्षीण होते जाते हैं। ० भावे शुद्धे पापान्निवृत्तिः ० न तत्र कर्मावलेपः
हमें भावतंत्र का शोधन करना चाहिए, जब भावतंत्र का शोधन हो जाता है, तब शरीर हिले-डुले, मन चले, फिर भी हिंसा का भाव न होगा, न हिंसा का व्यापार होगा, न कोई बुरी प्रवृत्ति होगी। मूल करणीय है भाव का शोधन । ० सज्जनता-दुर्जनता-सङ्गमः व्यक्ती
हमारी इस दुनिया में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है, जिसे सर्वथा बुरा कहा जा सके । हम जिसको बुरा मानते हैं, वह अच्छा भी है और जिसे अच्छा मानते हैं, वह बुरा भी है। अच्छाई और बुराई-दोनों साथ-साथ चलती हैं। अन्तर सिर्फ इतना सा होता है कि अच्छाई जब उभर कर सामने आती है तब बुराई नीचे रह जाती है। इसलिए हमे उस बिंदु की खोज करनी है, जहाँ व्यक्ति का रूपान्तरण होता है या जो व्यक्ति को रूपान्तरित करता है। खोज से यह निष्पत्ति हुई कि वह बिंदु है लेश्या। लेश्या एक ऐसा चैतन्य स्तर है, जहाँ पहुंचने पर व्यक्ति का रूपान्तरण घटित होता है। भावों का परिष्कार होता है। ० निष्फलाः भावशून्याः क्रियाः
श्वास लेने, शरीर का निरीक्षण करने, खाने-पीने, सारी क्रियाओं में साधक भावक्रिया करेगा। आचार्य सिद्धसेन ने लिखा है-“यस्मात् क्रिया प्रतिफलन्ति
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