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महाप्रज्ञ-दर्शन
__ जब आत्म परिणाम नाभि-कमल से ऊपर उठकर हृदय कमल की पंखुड़ियों पर जाता है तब समता की वृत्ति जागती है, ज्ञान का विकास होता है। जब आत्म परिणाम दर्शन केन्द्र पर पहुँचता है तब केवल ज्ञान की क्षमता जागृत होती है। ० हस्ते संयमिते स्पर्शनेन्द्रियसंयमः ० पादे संयमिते चक्षुरिन्द्रियसंयमः ० वाचि संयमितायां श्रोत्रेन्द्रियसंयमः
हाथ का संयम होने पर स्पर्शन इन्द्रिय वश में हो जाती है।
पैर का संयम करने से आँख का संयम हो जायेगा। वाणी का संयम करने से श्रोत्रेन्द्रिय का संयम हो जायेगा। ० सम्यग्तया जपाद्वाक्शुद्धिः ० सत्यतया च
शब्दों का संयोजन और उच्चारण हमारी भावना को प्रभावित करता है। शब्दों की शक्ति, भावना की शक्ति और उच्चारण की शक्ति-इन तीनों को समझना बहुत आवश्यक है। यही वाणी-शुद्धि की प्रक्रिया है। प्रलम्ब नाद इसी का संकेत है।
वाक्शुद्धि का दूसरा उपाय है-सत्य का आलम्बन। ० एकाग्रतया मनश्शुद्धिः
मनःशुद्धि के उपाय-संकल्प की दृढ़ता और एकाग्रता। एकाग्रता के अभ्यास से संकल्प दृढ़ बनता है। श्वास-प्रेक्षा एकाग्रता का अभ्यास है। जिसने श्वास को देखना प्रारम्भ कर दिया, उसने मन की शुद्धि का क्रम शुरू कर दिया। ० अव्यथिते मनसि ग्रहणशीलतावृद्धिः
व्यक्ति में ग्रहणशीलता तब बढ़ेगी जब वह तनाव मुक्त होगा। कायोत्सर्ग से तनाव विसर्जित हो जाता है। मस्तिष्क तनाव रहित होता है तब ग्रहण की क्षमता बढ़ जाती है। ० जिते रसे जितम् सर्वम्
अध्यात्म में सबसे ज्यादा बल जीभ को वश में करने के लिए दिया जाता
है।
० मिताहारे सुकरा साधना
साधना का एक सूत्र है मिताहार।
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