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________________ रूपान्तरणप्रक्रियाधिकरणे मनः पादः संतुलिताहारे च परिवर्तन का एक कारण है - भोजन । जब भोजन असंतुलित होता है तब आदतें बिगड़ जाती हैं। जब भोजन में विटामिन "ए" की कमी होती है तब स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। भोजन के परिवर्तन से भी स्वभाव बदल जाता है । O ० ० O ० यथाहारस्तथा रसायनम् यथा रसायनं तथा मनः यथा मनस्तथा विचार: यथा विचारस्तथा व्यवहारः जैसा आहार वैसा रसायन, जैसा रसायन वैसी मस्तिष्क क्रिया, जैसी क्रिया वैसा आचार-व्यवहार, विचार और आदतें । अतः स्वभाव परिवर्तन के लिए आहार शुद्धि अनिवार्य है । आहार का अर्थ व्यापक है । प्राण का आकर्षण, भाषा का आकर्षण, चिन्तन के परमाणुओं का आकर्षण आदि-आदि सब आहार हैं। ० आसनैः सहिष्णुता सहिष्णुता की शक्ति को बढ़ाने के लिए आसनों का प्रयोग भी कारगर होता है । O क्रोधावेगे श्रमे प्रवृत्तिरुपशमकारिणी जब क्रोध आये या क्रोध का तनाव बढ़े तब किसी न किसी प्रकार के शारीरिक श्रम में लग जाना चाहिए, जिससे कि ध्यान बंट जाने के कारण क्रोध का आवेग कम हो जाये । ३०३ ० आसनैः वृत्तिपरिवर्तनम् बदलने के अनेक कारण हैं, हिंसक से अहिंसक होने के अनेक कारण हैं। उन कारणों में योगासन भी एक महत्त्वपूर्ण कारण है। उनके अभ्यास के द्वारा उस तंत्र को बदला जा सकता है, जो हिंसा का तंत्र है । O शशाङ्कासनेन एड्रीनलग्रन्थिनियमनम् एड्रीनल ग्लेण्ड उत्तेजना के लिए काफी काम करती है। शशांकासन का प्रयोग करने से एड्रीनल पर नियंत्रण पाया जा सकता है। यदि प्रतिदिन इस आसन का प्रयोग किया जाये तो बहुत सारी वृत्तियों पर नियंत्रण पाया जा सकता है। यदि हमारा एड्रीनल ग्लेण्ड पर नियंत्रण होता है तो हिंसात्मक वृत्तियां कम होती हैं। हिंसात्मक उत्तेजनाएं कम हो जाती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003049
Book TitleMahapragna Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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