________________
रूपान्तरणप्रक्रियाधिकरणे सूक्ष्मजगत्पादः
२७७
का संग्रह है। आत्मा मूल शक्ति का स्रोत है। सूक्ष्म शरीर आत्मा पर आवरण डालता है। अतः चैतन्य को प्रकट होने के लिए माध्यम चाहिए ।
सूक्ष्म शरीर इन शक्तियों का सम्प्रेषण करता है। सूक्ष्म शरीर बीज है । उनके बोने पर ही स्थूल शरीर प्रकट होता है। सूक्ष्म शरीर का ही प्रतिबिम्ब स्थूल शरीर में होता है ।
हमारे चैतन्य की मुख्य तीन क्रियाएं हैं- ज्ञान, शक्ति और आनन्द | ज्ञान चेतना का आलोक है। आनन्द उसकी अनुभूति है और शक्ति उसकी मुक्तता है । तीनों में अवरोध डालना सूक्ष्म शरीर का कार्य है। किंतु चेतना के जागरण पर वह सूक्ष्म शरीर पर प्रहार करता है । जैसे-जैसे अवरोध दूर होता है वैसे-वैसे ज्ञान, आनन्द और शक्ति स्थूल शरीर में प्रकट होने लगते हैं। इसलिए स्थूल शरीर अभिव्यक्ति का एक बड़ा माध्यम है । वासना, कषाय, विकार सूक्ष्म शरीर में है, स्थूल में नहीं, किंतु ये अभिव्यक्त होते हैं स्थूल शरीर द्वारा।
सैक्स का केन्द्र वासना की अभिव्यक्ति का, ललाट-क्रोध की अभिव्यक्ति का, गर्दन अहंकार की अभिव्यक्ति का, जंघा शक्ति की अभिव्यक्ति का केन्द्र है ।
० प्रयासेन सर्वं प्राप्यत इति भ्रमः
अकर्मणापि सिद्धिः
सब कुछ प्रयत्न या कर्म से प्राप्त नहीं होता । कुछ ऐसी भी उपलब्धियाँ हैं जो केवल अप्रयत्न से ही प्राप्त होती हैं । हमने अज्ञानवश मान लिया है कि जो सिद्धि होगी वह केवल प्रयत्न या प्रवृत्ति से ही होगी। हम अकर्म या अप्रयत्न का मूल्य नहीं जानते ।
o
० शरीरे मनसि वाण्यामेकरूपता भावक्रिया
भावक्रिया का अर्थ है - शरीर, मन और वाणी को एक साथ मिला लेना ।
• ध्येयतन्मयता श्रद्धा
श्रद्धा का अर्थ है तन्मय हो जाना, ध्येय के प्रति समर्पित हो जाना या उसमें विलीन हो जाना
० विश्वासे भयसम्भावना
० अविश्वासस्तु स्वयं भयम्
विश्वास में कहीं खतरा संभव हो सकता है किंतु अविश्वास स्वयं खतरा
है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org