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अनुप्रेक्षा के चार प्रकार१. अनित्य,
२. अशरण
३. भव
४. एकत्व ।
• केवलं चैतन्यानुभवो ध्यानस्य चरमसोपानम्
शुद्ध चैतन्य की पश्यना, केवल चैतन्य का अनुभव, जो कषाय प्रशान्त अवस्था में प्राप्त होता है ।
॥ इति रूपान्तरणप्रक्रियाधिकरणे साधनापादः ।।
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महाप्रज्ञ-दर्शन
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