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रूपान्तरणप्रक्रियाधिकरणे भावपाद:
० समता-साधकानां वीतरागाणां मुक्तात्मनाञ्चेति त्रयाणां सुखमव्याबाधम्
तीन व्यक्तियों का सुख अव्याबोध सुख होता है० समता की साधना करने वाले साधक का। ० वीतराग का।
० मुक्त आत्मा का। ० भावो मनो मनोदशा च परिवर्तन्ते नृणां संवेदनशीलत्वात्
मनुष्य संवेदनशील होने के कारण एक रूप नहीं रहता। वह बदलता रहता है। उसके भाव बदलते रहते हैं, मन बदलता रहता है, मनोदशाएं बदलती हैं और मूड बदलता है। ० इच्छा व्यावर्तको धर्मो प्राणिनाम्। सा सूक्ष्मशरीरात्स्थूलशरीरमायाति प्रमादं कषायं चञ्चलताञ्च जनयति। सानुशासितव्या।
इच्छा प्राणी का गहनतम लक्षण है। यह एक ऐसी विभाजक रेखा है जो केवल प्राणी में ही होती है, अप्राणी में नहीं होती। यह एक ऐसा दरवाजा है जो सूक्ष्म शरीर से आता है और स्थूल शरीर में खुलता है।
इच्छा है तो प्रमाद भी होगा, कषाय और चंचलता भी होगी। इसलिए इच्छा पर अनुशासन करना जरूरी है। ० उप-निकटतया ईक्षणमुपेक्षा। सा च तटस्थे सम्भवति।
- उपेक्षा के दो अर्थ हैं-ध्यान न देना और निकटता से देखना। उप+ईक्षा उपेक्षा । जो तटस्थ होता है वही निकटता से देख सकता है। उपेक्षा का एक अर्थ है-ध्यान न देना, अवगणना करना।
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