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रूपान्तरणप्रक्रियाधिकरणे साधनापादः ० आहारसंयम-शान्तस्थान-गुरु-स्वाध्याय-सत्यनिष्ठा-चरित्र-वैराग्य-अप्रमादस्थिरासनानि ध्यानस्य परिकराः
ध्यान में सहायक तत्व ये हैं:
आहार–परिमित भोजन, न स्निग्ध न बहुत रूक्ष। कभी स्निग्ध कभी रूक्ष ।
स्थान-एकान्त जहाँ ध्यान में बाधा उत्पन्न करने वाला वातावरण न हो। सहायक-ध्यान के अनुभवी साधक। ज्ञान भावना-ध्यान में सहायक शास्त्रों का स्वाध्याय । दर्शन भावना-मानसिक शान्ति, अनासक्ति, अनुकम्पा और सत्यनिष्ठा। चरित्र भावना-अहिंसा, सत्य आदि पांचों का अभ्यास। वैराग्य भावना-आत्म स्वरूप के प्रति आकर्षण, वस्तुओं के प्रति
विकर्षण, अभय और समभाव। अप्रमाद-राग-द्वेष, मोह-रहित, वर्तमान क्षण का अनुभव ।
आसन विजय-एक आसन में दीर्घकाल तक बैठने का अभ्यास । ० कायोत्सर्ग-सूक्ष्मश्वास-मौनानि ध्यानस्य प्रथमसोपानम्
कायोत्सर्ग-शरीर की चंचलता और ममत्व विसर्जन।
सूक्ष्मश्वास-आनापान ध्यान, श्वास पर मन को एकाग्र कर क्रमशः सूक्ष्म करना।
मौन-वाचिक ध्यान। ० पश्यना-विचयानुप्रेक्षाः ध्यानस्य द्वितीयसोपानम्
इसकी तीन पद्धतियां हैं-पश्यना, विचय और अनुप्रेक्षा। पश्यना के पांच प्रकार हैं१. श्वास पर्याय पश्यना २. औदारिक पर्याय पश्यना ३. तैजस पर्याय पश्यना ४. चित्त पर्याय पश्यना ५. कर्म पर्याय पश्यना। विचय के चार प्रकार हैं१. आज्ञा विचय २. अपाय विचय ३. विपाक विचय ४. संस्थान विचय
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