________________
२६४
० समतां विना न धर्मो न शान्तिः
जब तक समता की साधना नहीं होगी, तब तक धर्म और शान्ति प्राप्त
नहीं की जा सकती ।
० संवरस्समाधिः
०
समाधि संवर है ।
आश्रवस्समस्या
समस्या आश्रव है ।
० अन्तर्जागरणं समाधिः
समाधि का अर्थ है - भीतर से जागना ।
• बहिर्मुखतासमाधिः
असमाधि - बाहर में जागना ।
० आत्मदर्शनोपादानं समाधिः आत्मदर्शन का उपादान - समाधि ।
० चैतन्यानुभवस्समाधिः
समाधि है - चैतन्य का अनुभव ।
० मूर्च्छासमाधिः
मूर्च्छा असमाधि है।
० प्रियताप्रियतासंवेदनमसमाधिः
प्रियता और अप्रियता का संवेदन है असमाधि ।
• मनोज्ञामनोज्ञयोर्मनोऽयोगस्समाधिः
मनोज्ञ अमनोज्ञ में मन का योग न करना समाधि है ।
• समतातारतम्यतस्सुखानुभूतिः
जितनी जितनी समता कम, उतनी उतनी सुखानुभूति कम ।
जितनी - जितनी समता अधिक, उतनी उतनी सुखानुभूति अधिक - यह एक समीकरण है ।
० दर्शनज्ञाने सहजे समाधिः
समाधि है दर्शन और ज्ञान - आत्मा का सहज स्वरूप |
महाप्रज्ञ–दर्शन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org