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महाप्रज्ञ-दर्शन
० जीवतीति जीवनम् ० तदिन्द्रियप्राणसंयोगेन
आदमी जीता है वही जीवन है। इन्द्रिय और प्राण के संयोग से ही वह बनता है। ० जीवनं शरीर-सापेक्षम् ० शरीर-मुक्ते न जीवनं न मृत्युः
जीवन शरीर-सापेक्ष है। शरीर मुक्त आत्मा में जीवन मौत जैसा कुछ भी नहीं होता। ० यत्र जीवनं तत्र तर्कः ० यत्र न जीवनं तत्र न तर्कः
तर्कवाद या मायाजाल जीवन से गुंथा हुआ है। जहाँ जीवन नहीं वहाँ तर्क नहीं होता। ० पदार्थ उपयोगीति सत्यम् ० पदार्थ एव सर्वमिति न
भौतिकवादी दृष्टिकोण का अर्थ है-पदार्थवादी दृष्टिकोण । यह सच है कि जब तक शरीर है तब तक पदार्थों को सर्वथा नहीं छोड़ा जा सकता। हमारा अनिष्ट तब होता है जब हम पदार्थवादी बन जाते हैं। पदार्थों का होना, पदार्थ का उपयोग करना और पदार्थवादी होना-ये दो पृथक्-पृथक् बातें हैं। पदार्थ का उपयोग है और वह उपयोग सर्वसम्मत है, असम्मत नहीं है, यह एक बात है और पदार्थवादी बन जाना, यह दूसरी बात है। ० पदार्थवादे चैतन्योपेक्षा
भौतिकवादी दृष्टिकोण की पहली निष्पत्ति है चैतन्य की उपेक्षा । आज चैतन्य गौण है और पदार्थ मुख्य है।
।। इति परिभाषाधिकरणे ज्ञानपादः ।।
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