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________________ परिभाषाधिकरणे ज्ञानपादः २५१ ० परं प्रति प्रामाण्यं प्रामाणिकता ० आत्मनं प्रति प्रामाण्यं परमप्रामाणिकता दूसरों के प्रति सच्चा रहना प्रामाणिकता तो है किंतु प्रामाणिकता की सच्ची परिभाषा है अपने प्रति सच्चा रहना। ० सुप्तचेतनोत्थानं साक्षात्कारः साक्षात्कार का अर्थ है, सुप्त चेतना का जागना । ० दृष्टिपरिवर्तनं सत्यसाक्षात्कारः दृष्टि बदलने का अर्थ है-सत्य का साक्षात्कार होना। ० दृष्टिपरिवर्तनं स्वात्मनि शान्तिगवेषणा दृष्टिकोण बदलने का अर्थ है-भीतर में शान्ति की खोज। आनंद की खोज, ज्ञान की खोज। ० निर्विचारे विलीने सति विचारे समग्रसत्याभिव्यक्तिः जहाँ विचार निर्विचार में विलीन हो जाते हैं, वहाँ सत्य समग्र होकर प्रकट होता है। ० मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्ना ० मतिभेदे स्वातन्त्र्यम् ० मतिभेदसमाप्तिप्रयासः स्वातन्त्र्ये हस्तक्षेपः ___ हर मनुष्य विचार से बंधा हुआ है। जितने मनुष्य, उतने विचार, इस प्रतिपाद्य में कोई असत्य नहीं है। स्वतंत्रता से जुड़ी हुई है विचार की भिन्नता, इसलिए विचारों को एक करने का प्रयत्न स्वतंत्रता की सीमा में हस्तक्षेप है। ० ज्ञानं सत्यसाक्षात्कारः ० मतं सत्यारोपणम् । जानना है-सत्य का साक्षात्कार | मानना है-सत्य का आरोपण | ० अपूर्ण इति सापेक्षोऽहम् __ मैं अपूर्ण हूं इसलिए सापेक्ष हूं। ० कर्ता विकर्ता स्वयमेव व्यक्तिः अच्छा-बुरा जैसा है, प्रत्येक कार्य के लिए व्यक्ति स्वयं उत्तरदायी है। ० इन्द्रिय-मनो-बुद्धिभिर्ज्ञायते व्यक्तिः . व्यक्तित्व को जानने के तीन साधन हैं-इन्द्रियां, मन और चित्त या बुद्धि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003049
Book TitleMahapragna Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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