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महाप्रज्ञ-दर्शन ० अस्तित्वे ममत्वाच्छन्ने सत्यनवच्छिन्नमवच्छिद्यते
मनुष्य ने जहाँ अस्तित्व को ममत्व से आबद्ध किया है, वहाँ असीम सीमा में बंधा है। ० अस्तित्वोपलब्धिरध्यात्मम्
अध्यात्म का अर्थ है-अपने अस्तित्व की उपलब्धि । ० अध्यवसायः स्पन्दनात्मकः ० लेश्या रेखात्मिका ० चिन्तनं चित्रात्मकम् ० वैखरी शब्दात्मिका
अध्यवसाय की भाषा तरंग की भाषा है, स्पंदन की भाषा है। लेश्या की भाषा रेखांकन की भाषा है। मन की भाषा चित्र की भाषा है।
आदमी की भाषा लिपि की भाषा है-अक्षरात्मक भाषा है। ० अस्तित्वं सम्पूर्णम् ० व्यक्तित्वमपूर्णम् ० अस्तित्वेऽखण्डचेतना ० व्यक्तित्वे खण्डितचेतना
अस्तित्व का मतलब है होना और व्यक्तित्व का मतलब है कुछ होना। अस्तित्व की अनुभूति में अखण्ड चेतना काम करती है। व्यक्तित्व की अनुभूति में खण्ड चेतना सक्रिय होती है। ० अस्तित्वं सत्यम्
जो अस्तित्व है, वही सत्य है। ० अदृश्यं सत्यं, न तु दृश्यम् ० बुद्धेः परं तत्सत्यं, न तु बुद्धिग्राह्यम्।
जो दृश्य है वह सत्य नहीं है, सत्य वह है जो अदृश्य है। जो बुद्धिगम्य है वह सत्य नहीं है, सत्य वह है जो बुद्धि से परे है। ० इन्द्रियैर्न यथार्थावबोधः ० निरपेक्षचेतनया तदवबोधः
यथार्थ का दर्शन इन्द्रियों से नहीं, किंतु निरपेक्ष चेतना से होता है।
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