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________________ परिभाषाधिकरणे ज्ञानपादः ० किञ्चनता खण्डितचेतनाहेतुः खंडित चेतना होने का कारण है-किञ्चनता। किञ्चनता का अर्थ है-मेरे पास कुछ है ? ० वीतरागताखण्डचेतना अखण्ड चेतना का अर्थ है-अनावृत चेतना, वीतराग चेतना। ० चैतन्यलक्षण आत्मा चैतन्य लक्षण, चैतन्य स्वरूप या चैतन्य गुण पदार्थ का नाम आत्मा है। ० आत्मनि न स्मृतिर्न कल्पना जहाँ कोई स्मृति नहीं है, जहाँ कोई कल्पना नहीं है उस बिंदु का नाम है-आत्मा या अस्तित्व। ० पूर्णतायां निराङ्काक्षा, ततोऽभयम्, ततोऽहिंसा पूर्णता का अर्थ है आकांक्षा का न होना। आकांक्षा के न होने का अर्थ है भय का न होना। भय के न होने का अर्थ है अहिंसा का होना। ० आक्रमण आस्थावान् हिंसावादी आक्रमण में विश्वास रखने वाले हिंसावादी हैं। ० प्रत्याक्रमण आस्थावान् मध्यमः प्रत्याक्रमण में विश्वास रखने वाले मध्यममार्गी हैं। ० अनाक्रमण आस्थावानहिंसकः अनाक्रमण में विश्वास रखने वाले अहिंसावादी हैं। ० अणुव्रतेन नाहिंसाविभाजनम्, किन्तर्हि ? तारतम्येनावाप्तिः । अणुव्रत अहिंसा की विभक्ति नहीं किंतु पहुँच का तारतम्य है। ० निरपेक्षो ममास्तित्वम्। अस्मीत्यनुभूये, न त्वनुभूयत इत्यस्मि मैं हूँ-यह निरपेक्ष अस्तित्व है। दूसरे मुझे अनुभव करते हैं, इसलिए मैं नहीं हूँ किंतु मैं हूँ : इसलिए दूसरे मुझे अनुभव करते हैं। मैं अपने आप में अपना अनुभव करता हूँ, इसलिए मैं हूँ। ० व्यक्तमस्तित्वस्योर्मयोऽस्तित्वं तदाच्छन्नम्। जो व्यक्त है वह अस्तित्व नहीं है। वह अस्तित्व की ऊर्मि-माला है। अस्तित्व उसके नीचे है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003049
Book TitleMahapragna Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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