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महाप्रज्ञ-दर्शन सत्य धर्म का दर्शन कहो या सम्यग्दर्शन कहो। सोने का ढकना कहो या मोहनीय कर्म कहो। दर्शन मोहनीय जाये तो सम्यग्दर्शन हो, सोने का ढकना हटे तो सत्य धर्म का दर्शन हो।
. किंतु, सोना तो सबको चाहिए न? इसलिए हम सोने के ढकने को मजबूती से पकड़े बैठे हैं। एक बार किसी ने सोने की कामना की थी। कहानी आचार्य महाप्रज्ञ की ही जुबानी सुनिये
मेरे देव ! ... मेरी सारी धरती सोने की हो जाए "यह किसलिये ?" इसलिए मेरे देव ! कि प्रजा सुखी हो जाए किसान को बीज बोना न पड़े मजदूर को भार ढोना न पड़े सबको आराम हो जाए मेरे देव !
और सारी धरती सोने की हो गई जहाँ देखो वहीं सोना-ही-सोना सोना इतना सस्ता हो गया कि अब सोना, सोना ही नहीं रहा
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बरसात हुई और किसान गए बीज बोने पर कहां बोएं चारों ओर सोने की धरती थी अन्न भण्डार पूरा हो गया हाहाकार होने लगा लोग भूख से तड़पने लगे
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वह दौड़ा..... सिर झुका प्रार्थना करने लगामेरी सारी धरती मिट्टी की हो जाए यह किसलिए? इसलिए मेरे देव ! प्रजा सुखी हो जाए किसान बीज बोए मजदूर काम करें
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