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काव्यालोचन
मूंद कर आँखें निहारो सत्य उजला सा लगेगा खोल कर आँखें निहारो सत्य धुंधला सा लगेगा
-आचार्य महाप्रज्ञ आँखें मूंदकर देखना वह सम्यग्दर्शन है। जिस सम्यग्दर्शन की गौरव-गाथा से शास्त्रों के पन्ने रंगे पड़े हैं-जिसने सम्यग्दर्शन प्राप्त कर लिया उसने क्या प्राप्त नहीं कर लिया क्योंकि उसने तो मुक्ति की गारन्टी प्राप्त कर ली। कोई उसे आँखें मूंदकर देखना कहता है तो कोई उसे गर्दन झुकाकर देखना कहता
दिल के आइने में है तस्वीरे यार,
जब जरा गर्दन झुकायी देख ली। शब्दों का खेल है। कोई आंखें मूंदने को कह रहा है, कोई गर्दन झुकाने को, पर महादेवी वर्मा तो सारा दायित्व आकाश में टिमटिमाते तारों पर डाले दे रही हैं जिनकी चकाचौंध प्रिय-मिलन में बाधक है
मेरे प्रिय को भाता है तम के पर्दे में आना
हे नभ की दीपावलियों ! तुम क्षण भर को बुझ जाना। उपनिषद् के ऋषि को कुछ और ही लग रहा है। उसे लग रहा है कि सत्य का मुख सोने के ढकने से ढका है। ढकना उघड़े तो सत्य का दर्शन हो
हिरण्यमयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम् तत्त्वं पूषन्नपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये।
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