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शिक्षा का नया आयाम
२१५ अनन्त है ही पर हम उतनी दूर तक न भी जाएं तो कम से कम शरीर और मस्तिष्क की क्षमताओं को जानकर उनका अधिकतम उपयोग करना तो सीखें। अपने में छिपी शक्ति का परिचय और साक्षात्कार करवाना पराविद्या का दूसरा अंग है। उसके लिए ध्यान की प्रक्रिया विहित है। ध्यान का भी प्रभाव हम पर क्या पड़ता है यह निरन्तर विज्ञान के द्वारा उद्घाटित किया जा रहा है।
तीसरा उपाय है- भावनाओं का परिष्कार । एक ही घटना को देखने के कई तरीके हो सकते हैं। यह बात तो सर्वविदित है कि हमें ऐसी परिस्थितियों का, ऐसी व्यवस्थाओं का निर्माण करना चाहिए जो हमारे लिए साधक हों बाधक नहीं किंतु यह बात गौण है। प्रथम स्थान इस बात का है कि जो भी परिस्थिति हमें मिलती है उसके प्रति क्या हमारी प्रतिक्रिया इस प्रकार की होती है जो हमारी अवनति का कारण बने या हमारी प्रतिक्रिया इस प्रकार की होती है कि वह प्रतिक्रिया हमारी उन्नति का कारण बने। इतिहास इस बात का साक्षी है कि जीवन में जो लोग भी सफल हुए हैं. वे इसलिए सफल नहीं हुए हैं कि परिस्थितियां उनके अनुकूल थी बल्कि इसलिए सफल हुए कि उन्हें प्रतिकूल परिस्थिति में से अपना मार्ग बनाने की कला आती थी। हमारी शिक्षा में यह कला सिखाई जानी चाहिए।
विज्ञान का यंत्रों पर बहुत विश्वास है किंतु यंत्रों का संचालन करने वाला भी मनुष्य ही है। यदि मनुष्य के तंत्र ठीक न हों तो यंत्र ही साधक की जगह बाधक बन सकते हैं। मनुष्य के पास चार तंत्र हैं-शरीर, श्वास, वाणी और मन। शरीर में पृष्ठरज्जु सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसके ऊपर का भाग ज्ञान से भरा है और नीचे का भाग शक्ति से भरा है। शक्ति जब ज्ञान से समन्वित होती है तो अपूर्व सर्जन करती है। इसे ही योग की भाषा में कुण्डलिनी का जागरण कहते हैं। यह कोई चमत्कार नहीं है अपितु एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है। प्राचीन काल में इन सब प्रक्रियाओं को गोपनीय रखा जाता था और कुछ विशिष्ट शिष्यों तक ही सीमित थी। आज लोकतंत्र का युग है। प्राचीन समय में जो चीजें कुछ विशिष्ट व्यक्तियों तक सीमित थी आज वह जनसाधारण में प्रचारित हो रही है। समय आ गया है कि योग की इन विधियों को शिक्षा की मुख्य धारा का अंग बना लिया जाए।
शरीर के बाद श्वास का स्थान है। श्वास अन्तर्जगत् और बाह्यजगत् का सेतु है। उसका मन से गहरा संबंध है। तीसरा तत्त्व वाणी है जो विचारों के आदान-प्रदान का माध्यम बनकर मनुष्य को सामाजिक बनाती है। चौथा तत्त्व मन है। अतीत की स्मृति और भविष्य की कल्पना का आधार यही मन है। यदि हमारे यह चार तंत्र सध जाएं तो हमारे सब क्रियाकलाप सध जाते हैं।
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