________________
२०८
महाप्रज्ञ-दर्शन समस्याएं खड़ी हो गईं। वस्तुस्थिति यह है कि जितना महत्त्व इस बात का है कि हम कैसे करें उससे कम महत्त्व इस बात का भी नहीं है कि हम क्या करें।
शिक्षा का अवमूल्यन हुआ है
जैसे आदिमकालीन मनुष्य विज्ञान और तकनीक से वंचित होने के कारण सारे कार्य अनगढ़ तरीके से करता था वैसे ही मूल्यविहीन शिक्षा के अभाव में हम अनगढ़ तरीके से सोचते हैं और अनगढ़ तरीके से व्यवहार करते हैं। जिस प्रकार आदिमकालीन मनुष्य के काम करने का अनगढ़ तरीका उसे शारीरिक कष्ट में डाले हुए था उसी प्रकार अनगढ़ तरीके से विचार करने का उपक्रम हमें मानसिक रूप से कष्ट में डाले है। हमें अपने जीवन का न कोई महत्त्व अनुभव होता और न जीवन का कोई गंभीर अर्थ ही प्रतीत होता है।
हम केवल तथ्यों को नहीं जानना चाहते और न केवल प्रशिक्षण या सूचनाएं प्राप्त करना चाहते हैं अपितु यह भी जानना चाहते हैं कि हमारे जीवन का प्रयोजन क्या है। कहा जा सकता है कि इस प्रश्न का उत्तर पाना एक दार्शनिक उपक्रम है और आवश्यक नहीं है कि सभी दार्शनिक हो । वास्तविकता यह है कि प्रकृति में कहीं भी शून्य नहीं रहता है। जब हम यह नहीं जानते हैं कि हमारे जीवन का प्रयोजन क्या है तो हमारा मस्तिष्क स्वेच्छा से हमारे सामने कोई न कोई लक्ष्य प्रस्तुत कर देता है। इन लक्ष्यों का निर्धारण हम स्वेच्छापूर्वक नहीं करते। परिणाम यह होता है कि हमारा मस्तिष्क हमारे सम्मुख अत्यन्त तुच्छ लक्ष्य घड़ कर रख देता है। उदाहरणत: रोटी कपड़ा मकान का जुगाड़ करना हमारे जीवन का लक्ष्य बन जाता है। किंतु साथ ही हम यह भी अनुभव करते हैं कि रोटी कपड़ा मकान हमारे अस्तित्व को बनाये रखने का साधन भले ही हो किंतु वह हमारे अस्तित्व का उद्देश्य नहीं हो सकता। ऐसी स्थिति में हम सदा दुविधा में जीते रहते हैं। हमें अपने जीवन का लक्ष्य उन्हीं चीजों को मानना पड़ता है जिन चीजों को हम हृदय से अपने जीवन का लक्ष्य स्वीकार नहीं कर सकते । परिणाम स्वरूप रोटी कपड़ा मकान के लिए किया गया संघर्ष एक लक्ष्य विहीन नीरस नाटक बन कर रह जाता
पशु नहीं है मनुष्य
मनुष्य एक विचारशील प्राणी है और उसे पग-पग पर यह सोचना होता है कि वह क्या करे और क्या न करे। यही मनुष्य जीवन है। पशुओं के सामने प्रायः यह दुविधा आती ही नहीं है और आए भी तो प्रकृति उन्हें घड़े-घड़ाए उत्तर दे देती है। उन्हें तब तक किसी शिक्षा की आवश्यकता नहीं होती जब
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org