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शिक्षा का नया आयाम
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तक कि मनुष्य ही उन्हें अपने किसी प्रयोजन या स्वार्थ से शिक्षित न करना चाहे ।
विज्ञान की सीमा
वस्तुस्थिति यह है कि हमें अपने जीवन के लिए विज्ञान के केवल उन्हीं पक्षों को जानने की आवश्यकता है जिन पक्षों से हमें उन कार्यों में सहायता मिलती हो जिन कार्यों को मनुष्य स्वयं अपने जीवन में करना चाहता है। उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति संगणक पर कार्य करना चाहे तो उसे वायुविमान के सिद्धांत जानना बिल्कुल आवश्यक नहीं है। इसलिए विज्ञान में विशेषज्ञता का महत्त्व दिया जाता है, किंतु जहां तक जीवन के प्रयोजन का प्रश्न है उसका जानना सभी के लिए आवश्यक है।
कठिनाई यह है कि आज हम हर चीज विज्ञान के द्वारा जानना चाहते हैं। जब तक कोई चीज प्रयोग के द्वारा सिद्ध न हो जाए हम उसे मानने के लिए तैयार नहीं हैं। स्पष्ट है कि जीवन का उद्देश्य क्या है यह प्रयोग के द्वारा सिद्ध नहीं किया जा सकता । फलतः हम यह मान बैठे हैं कि दर्शन अथवा धर्म एक काल्पनिक वस्तु है, वास्तविक तो विज्ञान ही है। विज्ञान को यह महत्त्व देने का परिणाम यह हुआ कि विज्ञान ने हमें एक भ्रांत दर्शन देना भी प्रारम्भ कर दिया ।
दर्शन और विज्ञान
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विज्ञान ने जो दर्शन हमें दिया उसकी कुछ महत्त्वपूर्ण किंतु भ्रांत मान्यताएं इस प्रकार हैं- पहली भ्रान्त मान्यता यह है कि मनुष्य पशु का ही एक विकसित रूप है, इसलिए मनुष्य और पशु में परिमाणात्मक अन्तर तो है किंतु गुणात्मक अंतर नही है। पशु के जीवन का एक ही पक्ष है - शरीर यात्रा का निर्वहन। वह सत्यम्, शिवम् अथवा सुन्दरम् की खोज नहीं करता है । मनुष्य जाति का इतिहास भौतिक संपदा के लिए संघर्ष का इतिहास है। किंतु मनुष्य उस संघर्ष को छिपाने के लिए धर्म या दर्शन का आवरण ओढ़े रहता है भौतिक संघर्ष में विजय उसकी होती है जो शक्तिशाली है। मनोवैज्ञानिकों ने भौतिक संघर्ष के साथ यह भी जोड़ दिया कि मनुष्य की समस्त प्रवृत्तियाँ कामना से प्रवृत्त होती हैं। स्पष्ट है कि विज्ञान द्वारा प्रदत्त इस दृष्टिकोण में इस बात के लिए कोई स्थान नहीं था कि मनुष्य अपने से ऊपर भी उठ सकता है। मान यह लिया गया कि विज्ञान के द्वारा प्रदत्त यह दृष्टि वैज्ञानिक है किंतु यदि थोड़ी गंभीरता से देखें तो इन मान्यताओं में ऐसा वैज्ञानिक कुछ भी नहीं है जिसे वस्तुनिष्ठ कहा जा सके। मनुष्यजाति के इतिहास में ऐसे असंख्य
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