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शिक्षा का नया आयाम
शरीर के लिए पदार्थ चाहिए। किंतु मनुष्य जीवन के लिए केवल पदार्थ ही पर्याप्त नहीं है। मनुष्य स्वभाव से ही यह जानना चाहता है कि इस विश्व का क्या स्वरूप है और इसमें उसका क्या स्थान है। इस ज्ञान के बिना समस्त आवश्यक पदार्थ भी मनुष्य को संतुष्ट नहीं कर सकते। कठोपनिषद् में कहा गया है कि मनुष्य धन से तृप्त नहीं हो सकता। बाईबल कहती है कि मनुष्य केवल भोजन से ही जीवित नहीं रहता है। जिन लोगों के पास जीवन की सारी सुविधाएं हैं वे भी न केवल असंतुष्ट है या न केवल दुखी है अपितु दिङ्मूढ़ भी
वर्तमान शिक्षा जानकारी दे रही है, संस्कार नहीं
शिक्षा का काम मनुष्य को संस्कार देना माना जाता रहा है। इन संस्कारों का आधार एक दृष्टि है। विज्ञान के विकास के साथ शिक्षा में केन्द्रीय स्थान विज्ञान को प्राप्त हो गया। विज्ञान हमें जानकारी देता है किंतु विज्ञान यह नहीं बता पाता कि इस जानकारी का उपयोग किस उद्देश्य के लिए किया जाए। परिणाम यह हुआ कि आज कि शिक्षा ने हमें सूचनाएं तो बहुत सी दे दी किंतु यह नहीं बता पाई कि इन सूचनाओं का उपयोग क्या हो। इससे एक दिङ्मूढ़ता पैदा हो गई। हमारे पास सूचनाएं हैं किंतु हम यह नहीं जानते कि इन सूचनाओं का उपयोग क्या करें | विज्ञान का विषय भौतिक पदार्थ रहे और उन भौतिक पदार्थों के संबंध में विज्ञान ने हमें बहुत सी सूचनाएं दी। प्रकृति के अनेक रहस्य उद्घाटित किए जिसके फलस्वरूप अनेक यंत्रों का निर्माण हुआ.और नई तकनीक विकसित हुई किंतु इन सब तकनीकों के बावजूद शिक्षा हमें वह दृष्टि नहीं दे पाई जिससे हम यह समझ पाएं कि हमें करना क्या है। विज्ञान ने यह बताया कि कैसे किया जाए किंतु यह नहीं बताया कि क्या किया जाए। फलस्वरूप विज्ञान के द्वारा प्रदत्त तकनीक का मनुष्य मनमाना प्रयोग करने लगा। जिसके परिणाम स्वरूप पर्यावरण प्रदूषण जैसी चिंताजनक
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