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________________ महाप्रज्ञ उवाच अमेरिकन भौतिक विज्ञान वेत्ता ए.ए. माइकेलसन और ई. डब्ल्यू. मोरले ने १८८१ में एक भव्य परीक्षण किया। उनके परीक्षण के पीछे निहित सिद्धान्त काफी सीधा था। उनका तर्क था कि यदि सम्पूर्ण आकाश केवल ईथर का एक गतिहीन सागर है तो ईथर के बीच पृथ्वी की गति का ठीक उसी तरह पता लगाना चाहिए और पैमाइश होनी चाहिए, जिस तरह नाविक सागर में जहाज के वेग को मापता है। जैसा कि न्यूटन ने इंगित किया था, जहाज के अन्दर के किसी यान्त्रिक परीक्षण द्वारा शांत जल में चलने वाले जहाज की गति मापना असम्भव है। नाविक जहाज की गति का अनुमान सागर में एक लट्ठा फेंककर और उससे बंधी रस्सी की गांठों के खुलने पर नजर रखकर लगाते हैं। अतः ईथर के सागर में पृथ्वी की गति का अनुमान लगाने के लिए माईकेलसन और मोरले ने लट्ठा फेंकने की क्रिया सम्पन्न की। अवश्य ही यह लट्ठा प्रकाश की किरण के रूप में था। यदि प्रकाश सचमुच ईथर में फैलता है, तो इसकी गति पर पृथ्वी की गति के कारण उत्पन्न ईथर की धारा का प्रभाव पडना चाहिए। विशेष तौर पर, पृथ्वी की गति की दिशा में फेंकी गयी प्रकाश-किरण में ईथर की धारा से उसी तरह हल्की बाधा पहुंचानी चाहिए, जैसी बाधा का सामना एक तैराक को धारा के विपरीत तैरते समय करना पड़ता है, इसमें अन्तर बहुत थोड़ा होगा, क्योंकि प्रकाश का वेग (जिसका ठीक-ठीक निश्चय सन् १८४१ में हुआ) एक सेकेण्ड में १,८६,२८४ मील है, जबकि सूर्य के चारों ओर अपनी धुरी पर पृथ्वी का वेग केवल बीस मील प्रति सेकेण्ड होता है, अतएव ईथर धारा को विपरीत दिशा में फेंके जाने पर प्रकाश किरण की गति १,८६,२६४ मील होनी चाहिए और यदि सीधी दिशा में फेंकी जाए तो १,८६,३०४ मील । इन विचारों को मस्तिष्क में रखकर माइकेलसन और मोरले ने एक यंत्र का निर्माण किया, जिसकी सूक्ष्मदर्शिता इस हद तक पहुंची हुई थी कि वह प्रकाश के तीव्र वेग में प्रति सेकेण्ड एक-एक मील के अंतर को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003049
Book TitleMahapragna Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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