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महाप्रज्ञ उवाच
भी अंकित कर लेता था । इस यंत्र में, जिसे उन्होंने “व्यतिकरणमापक” (Intererometer) नाम दिया, कुछ दर्पण इस तरह लगाए हुए थे कि एक प्रकाश किरण को दो भागों में बांटा जा सकता था और एक साथ ही दो दिशाओं में उन्हें फेंका जा सकता था । यह सारा परीक्षण इतनी सावधानी से आयोजित और पूरा किया गया कि इसके परिणामों में किसी तरह के संदेह की गुंजाइश नहीं रह गयी । इसका परिणाम सीधे-सादे शब्दों में यह निकला "प्रकाश-किरणों के वेग में, चाहे वे किसी भी दिशा में फेंकी गयी हों, कोई अन्तर नहीं पड़ता । "
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