________________
२०१
सापेक्षता और अनेकांत : विज्ञान और दर्शन में ऐसा कोई विभाजन नहीं है। निरपेक्ष काल अविभक्त ही है। जब तक हम विभक्त काल को ही एकमात्र सत्य मान लेते हैं तो यह काल का एक पक्षीय दृष्टिकोण हुआ। जड़-चेतन
जब जड और चेतन बंधे रहते हैं तो अन्योन्य सापेक्ष होते हैं। स्वतंत्र होने पर वे निरपेक्ष हो जाते हैं। इस प्रकार सापेक्ष की भी सत्प्रतिपक्ष निरपेक्षता है। निश्चय और व्यवहार की अनेक परिभाषाएं हैं। एक परिभाषा यह भी है कि अतीन्द्रिय ज्ञान निश्चय नय का विषय है, इन्द्रिय ज्ञान व्यवहारनय का विषय है। निश्चय सूक्ष्म को पकड़ता है, व्यवहार स्थूल को पकड़ता है-पूर्ण सत्य दोनों के समन्वय से प्राप्त होता है।
अस्तित्व के आधार पर केवल अभेद है क्योंकि अस्तित्व सबमें समान रूप से है। विशेष गुणों की अपेक्षा सबमें भेद है। उसके बिना किसी पदार्थ की अलग से सत्ता ही नहीं बन सकती।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org