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महाप्रज्ञ-दर्शन
हुआ कि सापेक्षता के सिद्धान्त का जन्म हो गया और प्रकाश की गति की हर परिस्थिति में एक समान रहने की पहेली का हल ढूंढ लिया गया। निश्चय ही यह जैन दृष्टिकोण का अवलम्बन लेने से हुआ। यदि अनुभव का ही अपलाप कर दिया जाता तो हम न्यूटन के युग में रह रहे होते ओर
आईंस्टीन का युग आता ही नहीं। २. प्रत्ययवादी दर्शन मायावाद अथवा मानसिक कल्पना का सहारा लेकर दो विरोधी तत्त्वों में एक को-नित्यता अथवा अनित्यता को-मिथ्या अथवा दृष्टिभ्रम अथवा मन की सृष्टि मान लेते हैं। विज्ञान के आलोक में, ऐसी परिस्थिति में हमें एक तत्त्व को झूठा कहने का अधिकार नहीं है। दृष्टिभ्रम का यह तो अर्थ हो सकता है कि हम पदार्थ को वैसा नहीं देख पा रहे हैं जैसा कि वह वस्तुतः है किंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि पदार्थ है ही नहीं। जैन इसे व्यवहार नय तथा निश्चय नय के माध्यम से स्पष्ट करता है। उदाहरणतः यदि भ्रमर में सभी रंग हैं और हमें वह काला नजर आता है तो ये दोनों परस्पर विरोधी तत्त्व हुए किंतु इस कारण इनमें से किसी को झूठा मानना उचित नहीं होगा। कहना यह होगा कि निश्चय नय से तो भ्रमर में सभी रंग हैं किंतु व्यवहार में वह काला ही दिखता है। ये दोनों दृष्टियाँ ही उपयोगी हैं। यदि हम निश्चय को न जानेंगे तो हम इस अज्ञान में ही जीते रहेंगे कि भ्रमर में केवल काला रंग है और यदि हम व्यवहार नय को मिथ्या माने लेंगे तो फिर यह कहना ही असम्भव हो जायेगा कि भ्रमर काला है।
आज विज्ञान के क्षेत्र में यह बात उभर कर आयी है कि स्थूल स्तर पर हमारा समस्त व्यवहार न्यूटन के सिद्धान्तों के आधार पर चलता है और वह खरा भी उतरता है किंतु परा-परमाणु के स्तर पर न्यूटन के सिद्धान्त गलत सिद्ध होते हैं और वहां हमें आईंस्टीन के सिद्धांत लागू करने पड़ते हैं। न्यूटन के और आईंस्टीन के सिद्धांतों में परस्पर विरोध है किंतु क्या इस कारण हम इनमें से किसी एक को मिथ्या मान सकते हैं ? वस्तुतः
भिन्न-भिन्न परिप्रेक्ष्य में दोनों ही सिद्धान्तों को सत्य मानना होगा। ३. अब तक न्यूटन युग की अवधारणाओं में बंधे रहकर जो एक रेखा को
दूसरी रेखाओं की अपेक्षा बड़ा-छोटा दोनों बताया जा रहा था वहां ऐसा लगता था कि सिद्ध-साधन दोष है। ५ फुट की रेखा ४ फुट की रेखा की अपेक्षा बड़ी तथा ६ फुट की रेखा की अपेक्षा छोटी है यह इतनी स्पष्ट बात है कि यह कहकर हम किसी गम्भीर तथ्य का उद्घाटन करने का दावा नहीं कर सकते थे। किंतु आईंस्टीन द्वारा यह कहे जाने पर एक ही छड़
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